Hindi, asked by mamtaverma61371, 6 months ago

सायर नाही सीप बिन, स्वाति बूंद भी नाहि।
कबीर मोती नीपजे, सुन्नि सिषर गढ़ माहिं।। १३​

Answers

Answered by shishir303
2

सायर नाही सीप बिन, स्वाति बूंद भी नाहि।

कबीर मोती नीपजे, सुन्नि सिषर गढ़ माहिं।। १३​

✎... अर्थात कबीर दास जी अपनी इस साखी में कहते हैं कि शरीर रूपी किले में सुषुम्ना नाड़ी के ऊपर स्थित ब्रह्मरंध्र में ना तो समुद्र है, ना ही सीप है और ना ही वहाँ पर स्वाति नक्षत्र की बूंद है, फिर भी वहाँ मोक्ष रूपी मोती उत्पन्न होता है अर्थात एक अद्भुत दिव्य ज्योति का दर्शन हो रहा है।

सामान्य तौर पर यह मान्यता व्याप्त है कि जब समुद्र की सीप में स्वाती नक्षत्र की बूंद पड़ती है, तो सीप में मोती का निर्माण होता है, लेकिन योग शास्त्र में ब्रह्मरंध्र मनुष्य के शरीर में कैसा अद्भुत स्थान है। जहाँ पर समुद्र, स्वाति नक्षत्र की बूंद और सीप का अभाव होने के बावजूद मोक्ष रूपी मोती उत्पन्न हो जाता है।

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

संबंधित कुछ और प्रश्न —▼

कबीरदास जी ने किस प्रकार आत्मा को अविनाशी सिद्ध किया है?

https://brainly.in/question/35175910

कबीर ने शरीर के लिए किस प्रतीक का प्रयोग किया है।

https://brainly.in/question/29285924  

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

Answered by dk085195
0

Explanation:

प्रस्तुत दोहे में कौन सा अलंकार है

Similar questions