“सभ्यता की वर्तमान स्थिति में एक व्यक्ति को दूसरे से वैसा भय तो नहीं रहता
रहा करता था, पर एक जाति को दूसरी जाति, एक देश को दूसरे देश से, भय
कारण प्रतिष्टित हो गए है। सबल, और निर्बल देशों के बीच अर्थ शोषण के
अनवरत चल रही है, एक क्षण का विराम नहीं है।"
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