India Languages, asked by shanayakh0792, 1 year ago

Sabji mandi me aadha ganta essay in hindi ....
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shanayakh0792: plzz any one answer fast

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Answered by chanchal12345
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>>>>> पापा के कहने पर मैं कल शाम मम्मी के साथ सब्जी मंडी गई थी|

 &lt;marquee behavior =move bgcolor =pink&gt;&lt;h1&gt; <br />  सब्जी मंडी<br />✿●‿●✿&lt;/h1&gt;&lt;/marquee &gt;

पहली बार बाजार जा कर मुझे बहुत अच्छा लगा| इतनी सारी दुकानें देख कर मैं सबसे पहले तो चौक गई थी |

भले ही उस सब्जी मंडी में मैंने आधा घंटा बिताया पर वहां पर मैंने जो भी देखा बहुत कुछ जाना

सब्जियों के बाजार भाव को मैंने जाना और सब्जियों को कैसे डालते हैं और नापतोल करना सिखा |

वहां पर सबसे महंगा मुझे दाने और कटहल लगे|

•• बाजार में मेहनत कर ले सब्जी बेचने वाले को देख कर मुझे थोड़ा बुरा भी लगा कि इतनी मेहनत करने के बावजूद भी उन्हें उचित दाम कभी कभी नहीं मिल पाता |

*****साथ ही मैंने इस बात पर भी ध्यान दिया और की डॉक्टर से ,स्कूल ,दुकानों आदि पर हम किसी से मोलभाव नहीं करते लेकिन सब्जी वालों से हर कोई मोलभाव करता है **पहले से ही वह इतना कम कमाते है , दिन रात मेहनत करते हैं फिर भी हम उनके बारे में एक बार तक नहीं सोचते |

>>>>> हमें सब्जी बेचने वालों के लिए भी सोचना चाहिए मैंने उनके निर्धारित सब्जी दाम पर पैसे दे देना चाहिए|
Answered by mayankmishra22032007
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Answer:

सब्जी-मंडी में आधा घंटा पर हिंदी में निबंध The Village Market Essay in Hindi

तरह-तरह की सब्जियाँ

मंडी में हरी और ताजी तरकारियों की भरमार थी। दुकानदारों ने उनको खूब सजाकर रखा था। कहीं आलू और प्याज के ढेर लगें थे, कहीं गोभी और बैंगन के । लौकी, परवल, मटर, टमाटर आदि की भी अपनी अपनी शान थी। लाल-लाल गाजर, लंबी-लंबी ककड़ियाँ और मोटी-मोटी मूलियाँ मन को ललचा रही थीं। सजाकर रखे गए नींबू मानो कह रहे थे-‘हम भी कुछ कम नहीं !’ पालक, मेथी, चौलाई जैसी सब्जियाँ अपने हरे-भरे रंग-रूप से सब्जी-मंडी की शोभा में चार चाँद लगा रही थी।

फलों की दुकाने

फलों की दुकानें भी कम आकर्षक न थीं । आम, पपीता, अनार, अंजीर, चीकू, जामुन आदि फलों के ढेर देखकर मुँह में पानी आ जाता था। लेकिन अधिकांश ग्राहकों की भीड़ तो शाक-सब्जियों की दुकानों पर ही लगी हुई थी। कुछ बाबू लोगों के सिवा फलों की तरफ देखने की कोई हिम्मत ही नहीं कर रहा था।

ग्राहक और दुकानदार

सब्जी-मंडी में तरह-तरह की आवाजें सुनाई दे रही थीं। कहीं भाव-ताल हो रहा था। कहीं ग्राहकों और दुकानदारों में पैसे के लिए झगड़ा हो रहा था। ग्राहक कहता था कि मैंने पैसे दिए है और दुकानदार कहता था कि पैसे नहीं दिए हैं । ईश्वर जाने कि कौन सच्चा था और कौन झूठा ! कहीं-कहीं दुकानदार के तराजू व तौल के विषय में शंकाएँ उठाई जा रही थीं। ऐसे तमाशे तो यहाँ रोज चलते ही रहते हैं।

सब्जी मंडी में ग्राहकों की अपनी शैलियाँ थीं। किसी-किसी ग्राहक की खरीदारी की कला देखते ही बनती थी। कुछ ग्राहक बड़े विनोदी थे। वे खुद भी हँस रहे थे और दुकानदार को भी हँसा रहे थे। कुछ ग्राहक अपने परिचितों से दिन पर दिन महँगी हो रही सब्जियों पर चिंता प्रकट कर रहे थे।

आपसी चर्चा

सब्जी-मंडी में तरह-तरह की शाक-भाजियों की तरह समाज के भी हर रूप के दर्शन हो रहे थे। कुछ लोगों के चेहरे पर खुशी की सुबह थी, तो कुछ के चेहरे पर उदासी की शाम । कुछ की जेब गरम थी, तो कुछ की ठंडी । कुछ ज्यादा पैसे देकर भी अच्छी चीज खरीद लेने को आतुर थे और कुछ बेचारे सस्ती सब्जियाँ ढूँढ रहे थे।

उपसंहार

सब्जी मंडी की उस चहल-पहल में आधा घंटा किस तरह बीत गया इसका पता ही न चला। सचमुच, सब्जी-मंडी हमें खरीदारी की कला सिखाती है। उसमें आधा घंटा बिताने से जो अनुभव मिलते हैं, वे भी उतने ही रोचक और लाभदायक होते हैं जितनी की सब्जी-मंडी की तरकारियाँ ।

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