Sabun par vigyapan 200words
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ब्रिटिश शासन के दौरान इंग्लैंड के लीवर ब्रदर्स ने भारत में पहली बार आधुनिक साबुन पेश करने का जोखिम उठाया। कंपनी ने साबुन आयात किए और यहां उनकी मार्केटिंग की। हालांकि नॉर्थ वेस्ट सोप कंपनी पहली ऐसी कंपनी थी जिसने १८९७ में यहां कारखाना लगाया। साबुन की कामयाबी की एक अहम कड़ी में जमशेदजी टाटा ने १९१८ में केरल के कोच्चि में ओके कोकोनट ऑयल मिल्स खरीदी और देश की पहली स्वदेशी साबुन निर्माण इकाई स्थापित की।[3] इसका नाम बदलकर टाटा ऑयल मिल्स कंपनी कर दिया गया और उसके पहले ब्रांडेड साबुन बाजार में १९३० की शुरुआत में दिखने लगे। १९३७ के करीब साबुन धनी वर्ग की जरूरत बन गया।
साबुन के पानी में घुलाने से तेल और पानी के बीच का पृष्ठ तनाव बहुत कम हो जाता है। इससे वस्त्र के रेशे विलयन के घनिष्ठ संस्पर्श में आ जाते हैं और मैल के निकलने में सहायता मिलती है। मैले कपड़े को साबुन के विलयन प्रविष्ट कर जाता है जिससे रेशे की कोशिओं से वायु निकलने में सहायता मिलती है।
ठीक-ठीक धुलाई के लिए यह आवश्यक है कि वस्त्रों से निकली मैल रेशे पर फिर जम न जाए। साबुन का इमलशन ऐसा होने से रोकता है। अत: इमलशन बनने का गुण बड़े महत्व का है। साबुन में जलविलेय और तेलविलेय दोनों समूह रहते हैं। ये समूह तेल बूँद की चारों ओर घेरे रहते हैं। इनका एक समूह तेल में और दूसरा जल में धुला रहता है। तेल बूँद में चारों ओर साबुन की दशा में केवल ऋणात्मक वैद्युत आवेश रहते हैं जिससे उनका सम्मिलित होना संभव नहीं होता।
Answer:साबुन कपड़े धोने एवं नहाते समय शरीर की सफाई में प्रयुक्त होता है। ऐतिहासिक रूप से यह ठोस या द्रव के रूप में उपलब्ध है। आजकल साबुन का स्थान अन्य सफाई करने वाले उत्पादों ने लिया है, जैसे संश्लेषित डिटर्जेंट आदि। सोडियम साबुन कड़ा होता है इसलिए कपड़ा धोने के लिए इसका उपयोग होता है एवं पोटैशियम साबुन मुलायम होता है इसलिए इसका उपयोग शरीर धोने के लिए, त्वचा को मुलायम रखने एवं दाढ़ी बनाने में होता है। कार्बोलिक साबुन का उपयोग त्वचा रोगों के इलाज में तथा जीवाणुनाशक के रूप में किया जाता है। इसमें ०.५ प्रतिशत फेनाल होता है, इसे औषधीय साबुन भी कहते हैं। सल्फर युक्त साबुन का उपयोग भी त्वचा रोगों में किया जाता है। एल्यूमीनियमसाबुन का उपयोग वाटर प्रूफिंग में होता है।[2]
ब्रिटिश शासन के दौरान इंग्लैंड के लीवर ब्रदर्स ने भारत में पहली बार आधुनिक साबुन पेश करने का जोखिम उठाया। कंपनी ने साबुन आयात किए और यहां उनकी मार्केटिंग की। हालांकि नॉर्थ वेस्ट सोप कंपनी पहली ऐसी कंपनी थी जिसने १८९७ में यहां कारखाना लगाया। साबुन की कामयाबी की एक अहम कड़ी में जमशेदजी टाटा ने १९१८ में केरल के कोच्चि में ओके कोकोनट ऑयल मिल्स खरीदी और देश की पहली स्वदेशी साबुन निर्माण इकाई स्थापित की।[3] इसका नाम बदलकर टाटा ऑयल मिल्स कंपनी कर दिया गया और उसके पहले ब्रांडेड साबुन बाजार में १९३० की शुरुआत में दिखने लगे। १९३७ के करीब साबुन धनी वर्ग की जरूरत बन गया।
साबुन के पानी में घुलाने से तेल और पानी के बीच का पृष्ठ तनाव बहुत कम हो जाता है। इससे वस्त्र के रेशे विलयन के घनिष्ठ संस्पर्श में आ जाते हैं और मैल के निकलने में सहायता मिलती है। मैले कपड़े को साबुन के विलयन प्रविष्ट कर जाता है जिससे रेशे की कोशिओं से वायु निकलने में सहायता मिलती है।
ठीक-ठीक धुलाई के लिए यह आवश्यक है कि वस्त्रों से निकली मैल रेशे पर फिर जम न जाए। साबुन का इमलशन ऐसा होने से रोकता है। अत: इमलशन बनने का गुण बड़े महत्व का है। साबुन में जलविलेय और तेलविलेय दोनों समूह रहते हैं। ये समूह तेल बूँद की चारों ओर घेरे रहते हैं। इनका एक समूह तेल में और दूसरा जल में धुला रहता है। तेल बूँद में चारों ओर साबुन की दशा में केवल ऋणात्मक वैद्युत आवेश रहते हैं जिससे उनका सम्मिलित होना संभव नहीं होता।
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