सच्चा प्रेम वही है जिसकी -
तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर।
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कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय बने रहने के लिए क्यों कहा है।
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सच्चा प्रेम वही है जिसकी -
तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर।
कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय बने रहने के लिए क्यों कहा है।
कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय बने रहने के लिए इसलिए कहा है, क्योंकि कवि के अनुसार मृत्यु ही वह स्थान है, जहाँ मनुष्य अपने जीवन भर की थकावट को दूर करता है और विश्राम पाता है।
मनुष्य जीवन भर मनुष्य संघर्ष करता रहता है। अनेक तरह के संकट व दुखों से जूझता है। वह पूरे जीवन संघर्ष करके थक जाता है। मृत्यु प्राप्त होने पर वह अपनी थकावट को दूर विश्राम करता है। इसलिए मनुष्य को मृत्यु से भयभीत नहीं होना चाहिए। मृत्यु ही वह जगह है, जहाँ मनुष्य पुराना शरीर त्याग कर नया शरीर धारण करता है और अपने नवीन जीवन की ओर अग्रसर होता है।
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