सच को तप और झूठ को पाप क्यों कहा गया है
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साँच बराबरि तप नहीं, झूठ बराबर पाप। ... सच्चाई के बराबर कोई तपस्या नहीं है, झूठ (मिथ्या आचरण) के बराबर कोई पाप कर्म नहीं है। जिसके हृदय में सच्चाई है उसी के हृदय में भगवान निवास करते हैं।
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