sadak surchha adhiniyam
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यातायात को नियंत्रित–व्यवस्थित करने के लिए कानून की कमी नहीं है। सड़कों पर तेज गति से भागती हुई लंबी कारें किसी की परवाहकिए बिना दौड़ रही हैं। सरकारी और गैर सरकारी सर्वे यह बता रहे हैं कि प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटना में बढोत्तरी हो रही है। भारत का नामदुनिया के उन देशों में शामिल है, जिनका सड़क सुरक्षा के मामले में बेहद खराब रिकार्ड है। “देश में प्रत्येक वर्ष पांच लाख सड़कदुर्घटनाएं होती हैं और दुर्घटनाओं के कारण तक़रीबन 1,42,000 लोग दम तोड़ देते हैं, पांच लाख से ज्यादा घायल और कितने ही ज़िन्दगी भर के लिए अपंग। इसका अर्थ है कि हर एक मिनट में एक सड़क दुर्घटना होती है और चार से कम मिनट में दुर्घटना के कारण एकव्यक्ति दम तोड़ देता है। यह बात यही पर नहीं ख़तम हो जाती, दुर्घटना के शिकार व्यक्ति के परिवार पर जो गुज़रती है उसका कोई हिसाब नहीं है।
किसी चौराहे पर लाल बत्ती को धता बताकर रोड पार कर जाना, गलत तरीके से ओवरटेकिंग, बेवजह हार्न बजाना, निर्धारित लेन में नचलना और तेज गति से गाड़ी चलाकर ट्रैफिक कानूनों की अवहेलना आज के नवधनाढय युवकों का प्रमुख शगल बन गया है। विकासके साथ–साथ जिस सड़क संस्कृति की जरूरत होती है वह हमारे देश में अभी तक नहीं बन पाई है।
भारत में वर्षों से सड़क सुरक्षा पर बहस चलती रही है। फिर भी कुछ बेहतर नतीजे निकलकर सामने नहीं आए हैं। आलम यह है किरोज–ब–रोज सड़क हादसों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है और इन्हें लेकर जनता में न तो भय है और न ही घृणा।
इसके लिए कौन दोषी है, फिसलती सड़कें या बढ़ते वाहन? खैर, इतना तो साफ है कि सड़क पर जिंदगी और मौत के बीच का फर्कमिटता जा रहा है। हालांकि, हादसों की कुछ ऐसी वजहें हैं, जिन्हें दूर करने की जरूरत है। सबसे पहली वजह है, चालकों और यात्रियोंकी लापरवाही। अगर पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें, तो राजमार्गों पर तेज गति से वाहन चलाने, ट्रैफिक सिग्नल की अनदेखीकरने, शराब पीकर ड्राइविंग करने और मोबाइल फोन पर बातचीत करते हुए गाड़ी चलाने से सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं। हालांकि, इसकादूसरा पक्ष भी है। देश में ऐसे बस मालिकों–ड्राइवरों की कमी नहीं है, जो लालची हैं। उनकी प्राथमिकता में बस पैसा कमाना है, न कियात्रियों की सुरक्षा पर ध्यान देना। वे व्यस्तम बस रूटों को रेस–ट्रैक समझते हैं। एक–दूसरे के वाहनों को ओवरटेक करते हैं। गाड़ियोंको आपस में भिड़ा देते हैं। ऐसे में, उन यात्रियों की जान पर ही बन आती है, जो पैदल सड़क पार कर रहे होते हैं। जाहिर है, इन परअंकुश लगाने की जरूरत है। इन सभी मामलों में सामाजिक संगठनों, पुलिस–प्रशासन और जनता की भागीदारी बहुत जरूरी है। सड़कयातायात नियमों को मानने के लिए सबको राजी करना एक बड़ी चुनोती है जो हमें स्वीकार्य है।
हम सहयोग के लिए आग्रह करते हैं की हमें स्कूलों और जन स्तर में सड़क सुरक्षा के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए योगदान दें।और जानकारी के लिए या सवाल–जवाब के लिए आप ईमेल या फ़ोन से संपर्क कर सकते है।
Sadak suraksha ke 2 niyum suraksha aur saiyam