Sagar nahi chalakta dakha poem ka sarans digiya
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सागर नहीं छलकते देखे
कुछ आपके लिए: यह कविता राष्ट्रवादी काव्यधारा के अग्रणी कवि श्री राम प्रकाश राकेश' द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने मनुष्य के स्वभाव में गंभीरता लाने तथा हृदय से ओछेपन को दूर करने पर बल दिया है। इस कविता में मिथ्यावाद से दूर रहने और सबके साथ प्रेमभाव रखने की प्रेरणा दी गई है।
गागर अकसर छलका करती,
सागर नहीं छलकते देखे।
नकली काँच चमकता अकसर,
हीरे सदा झलकते देखे।
जिनका हृदय प्रेम से सूना, उस घट से श्मशान भला है,
ओछी तबियत के मानव से, कब-कब किसको प्यार मिला है?
शूल और फूलों में केवल अंतर इतना ही होता है-
काँटे सदा चुभन ही देते, लेकिन फूल महकते देखे।
गागर अकसर छलका करती,
सागर नहीं छलकते देखे।
बहुत मिले हैं मंचों पर चढ़, थोथे गाल बजाने वाले,
बहुत मिले हैं देश सुधारक, रामराज्य चिल्लाने वाले।
बूंद नहीं पानी की जिनमें, वे घन बहुत गरजते अकसर,
जिनके घट में शीतलता हो, बादल वही बरसते देखे।
गागर अकसर छलका करती,
सागर नहीं छलकते देखे।
प्यास नहीं सागर की बुझती, साथी सरिता के पानी से,
नौका पार नहीं होती है, तूफ़ानों में नादानी से।
जीवन की नौका खेने को, साहस की पतवार चाहिए,
अपने पर विश्वास न जिनको, माँझी वही बहकते देखे।
गागर अकसर छलका करती,
सागर नहीं छलकते देखे।
-राम प्रकाश 'राकाश'