Business Studies, asked by sunitaanita25, 7 months ago

सहकारी समिति एवं कंपनी के मध्य किन्हीं तीन अंतर का वर्णन करें​

Answers

Answered by as7640733gmailcom
1

Answer:

सहकारी समितियों की कानूनी रुपरेखा: क्रमिक विकास

सहकारी समितियों की कानूनी रुपरेखा: क्रमिक विकास

प्रथम सहकारी अधिनियम - क्रेडिट कोपरेटिव सोसायटी एक्ट, 1904: केवल प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के संगठन के लिए ।

कोपरेटिव सोसायटी एक्ट, 1912: अधिनियम के दायरे में गैर क्रेडिट और संघीय सहकारी समितियों को जोड़ा गया ।

भारत सरकार एक्ट, 1919: सहकार एक प्रांतीय विषय बना ।

बहु-इकाई कोपरेटिव सोसायटी एक्ट, 1942: उन समितियों के लिए जिनकी सदस्यता और संचालन को एक प्रांत / राज्य से आगे बढ़ाया जा सके । बाद में बहु-राज्य कॉप. सोसायटी एक्ट, 1984 ने इसकी जगह ली ।

अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण समिति, 1954: प्रोफेसर ए.डी. गोरवाला के नेतृत्व में सहकारी समितियों की शेयर पूंजी और प्रबंधन में राज्य साझेदारी करने के लिए अग्रणी राज्य नीति में 'सहकार' के समावेश के लिए सिफारिश की ।

सहकारी कानून पर समिति, 1956: तत्कालीन खाद्य और कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री एस.टी. राजा की अध्यक्षता में - राज्य सहकारी समिति अधिनियमों में संशोधन करते हुए सहकारी समितियों पर सरकार की पकड़ को और मजबूत किया गया ।

सहकारी कानून के लोकतंत्रीकरण और सहकारिता में व्यवसायीकरण के प्रबंधन के लिए समिति, 1985: श्री के.एन. अधनारीश्‍वरन की अध्यक्षता में, समिति ने 1987 में अपनी रिपोर्ट के माध्यम से सुझाव दिया कि लोकतांत्रिक चरित्र और सहकारी समितियों की स्वायत्तता के खिलाफ कुछ प्रावधानों का विलोपन किया जाए ।

चौधरी ब्रह्म प्रकाश समिति, 1990: समिति ने 1991 में एक मॉडल राज्य सहकारी समिति विधेयक का सुझाव दिया । विधेयक का मुख्य जोर सहकारी समितियों की कार्य प्रणाली में सदस्यों की स्वायत्ता एवं लोकतांत्रिक संस्थाओं का स्वामित्व, प्रबंधन और नियंत्रण सदस्यों दवारा किया जा सके ।

समानांतर सहकारिता अधिनियम: चौधरी ब्रह्म प्रकाश समिति की सिफारिशों के आधार पर नौ राज्यों अर्थात्; ए.पी., मध्य प्रदेश, बिहार, जम्मू-कश्मीर, ओडिशा, कर्नाटक, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल ने अब तक समानांतर सहकारिता अधिनियम को सुनिश्चित किया है, जिससे सहकारी समितियों के स्वायत्त और लोकतांत्रिक कामकाज पर बल दिया जा रहा है ।

बहु-राज्य कोपरेटिव सोसायटी एक्ट: चौधरी ब्रह्म प्रकाश समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए बहु-राज्य कोपरेटिव सोसायटी एक्ट, 1984 को बहुराज्य कोपरेटिव सोसायटी एक्ट, 2002 से बदल दिया गया ।

कंपनी (संशोधन) एक्ट, 2002, (उत्पादक कंपनी): वाई.के. अलघ समिति की सिफारिशों के आधार पर कंपनी एक्ट, 1956 में एक नया अध्याय IX-A (उत्पादक कंपनी) जोड़ा गया । विधान सहकारी कंपनियों के रूप में व्यापार एवं वर्तमान में मौजूद पात्र सहकारी दुग्ध संघों के कंपनियों में रूपांतरण के समावेश के लिए बल देता है, जिससे सहकारी दर्शन-शास्त्र के अनूठे तत्वों का भी ध्यान रखा गया है ।

संविधान (97 वां संशोधन) अधिनियम – 2011: संविधान (97 वां संशोधन) अधिनियम, 2011 का उद्देश्य सहकारिता की स्वायत्तता सुनिश्चित करना तथा राज्य एवं राजनीतिक हस्तक्षेप से उन्हें बचाना है | इसके साथ ही इसमें सहकारी समितियों के कुशल संचालन के लिए में अधिक से अधिक प्रबंधकीय कौशल को लाने की भी परिकल्पना की गयी है। संविधान (97 वां संशोधन) अधिनियम, 2011 की मुख्य विशेषताएं सूचीबद्ध हैं:

सहकारी समिति के निर्देशकों की संख्या 21 से ज्यादा नही होनी चाहिए ।

प्रत्येक सहकारी समिति के बोर्ड में एक सीट अनूसूचित जाति/अनूसूचित जनजाति के लिए एवं 2 सीट महिलाओं के लिए आरक्षित रखी जाए जिसमें वैयक्तिक सदस्‍य होंगें और इस प्रकार की श्रेणी/वर्ग के सदस्य होंगे ।

व्यक्तियों के सह-विकल्प (विशेषज्ञ) बोर्ड में 21 के अतिरिक्त 2 सदस्‍यों को जिन्हें बैंकिंग, प्रबंधन, वित्त के क्षेत्र में अनुभव हो अथवा किसी भी अन्य क्षेत्र जो समिति के दवारा किए जा रहे कार्यकलापों से संबंधित हो उसमें विशेषज्ञता हो को भी बोर्ड में सहयोजित किया जा सकता है । इन सहयोजित सदस्यों को सहकारी समिति के किसी भी चुनाव में मतदान करने या बोर्ड के पदाधिकारियों के रूप में निर्वाचित होने की पात्रता का अधिकार नहीं होगा ।

बोर्ड के निर्वाचित सदस्य एवं कार्यालय के अधिकारी का कार्यकाल 5 वर्ष से अधिक न हो ।

अधिक्रमण (सुपरशेसन) की अवधि 6 मास से अधिक न हो । सरकार द्वारा जहां किसी प्रकार की सरकारी शेयरहोल्डिंग, ऋण अथवा वित्तीय सहायता की गारंटी नहीं है, वहां कोई अधिक्रमण नही हो ।

सद्स्यों के लिए सहकारी शिक्षण और प्रशिक्षण ।

Similar questions