saltnat calling Baat Itihaas ke Pramukh aitihasik ki Vyakhya kijiye
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मध्यकालीन भारत का इतिहास
दिल्ली सल्तनत Delhi Sultanate
February 20, 2015 admin 33369 Views 2 Comments
दिल्ली सल्तनत (1206ई.-1526 ई.)
गुलाम वंश (1206-1290 ई.)
कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.)
तराइन के द्वितीय युद्ध में विजय के उपरांत मुहम्मद गौरी गजनी लौट गया और भारत का राजकाज अपने विश्वस्त गुलाम गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दिया गया।
भारत में तुर्की शासन की स्थापना 1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी। यह गुलाम वंश का था। 1206 से 1290 ई. के मध्य दिल्ली सल्तनत के सुल्तान गुलाम वंश के संतानों के नाम से विख्यात हुए।
गुलाम वंश को मामलूक वंश के नाम से भी जाना जाता है। ‘मामलूक’ शब्द से अभिप्राय स्वतंत्र माता-पिता से उत्पन्न हुए दास से है।
मिन्हाजुद्दीन सिराज ने कुतुबुद्दीन ऐबक को एक वीर एवं उदार ह्रदय का सुल्तान बताया है। उसकी असीम उदारता के लिए उसे ‘लाखबख्श’ कहा जाता था।
कुतुबुद्दीन ऐबक नेदिल्ली में ‘कुव्वत उल-इस्लाम’ और अजमेर में ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ नमक नस्जिदों का निर्माण कराया था।
ऐबक ने सूफी संत ‘ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी’ के नाम पर दिल्ली में कुतुबमीनार की नींव डाली, जिसे इल्तुतमिश ने पूरा किया।
ऐबक ने साम्राज्य विस्तार से अधिक ध्यान राज्य के सुदृढ़ीकरण पर दिया। उसने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया था।
1210 ई. में घोड़े से गिरकर ऐबक की मृत्यु हो गयी। उसकी मृत्यु के बाद उसका अयोग्य पुत्र आरामशाह सुल्तान बना। किन्तु इल्तुतमिश ने उसे युद्ध में पराजित कर मर डाला और स्वयं सुल्तान बन गया।
इल्तुतमिश (1210-1236 ई.)
इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। यह कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद था।
इल्तुतमिश ने राजधानी को लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित किया।
इल्तुतमिश ने ‘तुर्कन-ए-चिहलगानी’ (चालीसा दल) नाम से, चालीस गुलाम सरदारों के एक गुप्त संगठन का गठन किया।
इल्तुतमिश ने चांदी का ‘टंका’ और तांबे का ‘जीतल’ नामक सिक्का चलाया।
इल्तुतमिश ने 1229 ई. में बगदाद खलीफा से अधिकार प्राप्त किया। उसने इस संस्था का प्रयोग भारतीय समाज की सामंतवादी व्यवस्था को समाप्त करने तथा राज्य के भागों को केंद्र के साथ जोड़ने के साधन के रूप में प्रारंभ किया।
इल्तुतमिश ने 1231-1232 ई. में कुतुबमीनार ने निर्माण का कार्य पूरा करवाया।
इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उसके पुत्र रुकनुद्दीन फिरोज को तुर्की के अमीरों ने सुल्तान बनाया, लेकिन वह मुश्किल से 7 महीने ही शासन कर पाया।
रजिया सुल्तान (1236-1240 ई.)
रुकुनुद्दीन के समय वास्तविक सत्ता उसकी मां शाहतुर्कान के हाथों में थी, जो एक अति महत्वाकांक्षी महिला थी। इसलिए दिल्ली की जनता ने रुकुनुद्दीन को अपदस्थ करके रजिया को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया।
रजिया दिल्ली सल्तनत की प्रथम महिला और अंतिम महिला सुल्तान थी।
रजिया सुल्तान दिल्ली के 23 सुल्तानों में से एक मात्र सुल्तान थी, जिसने जनता के समर्थन से गद्दी प्राप्त की थी।
रजिया ने एक अबीसीनियन मलिक याकूत को अमीर-ए-आखूर (अश्वशाला का प्रधान) नियुक्त किया।
रजिया के काल से राजतंत्र और तुर्क सरदारों के बीच संघर्ष प्रारंभ हुआ।
1240 ई. में अमीरों ने रजिया के भाई बहरामशाह को दिल्ली के तख़्त पर बैठाया। बहरामशाह ने रजिया को युद्ध में परास्त कर उसकी हत्या कर दी।
बहरामशाह ने 1240 से 1242 ई. तक शासन किया। उसके बाद अलाउद्दीन शाह ने 1242 से 1246 ई. तक शासन किया।
इन दोनों के काल में समस्त शक्ति चालीसा दल के हाथों में थी, सुल्तान नाममात्र के लिए ही था।
नसिरुद्दीन महमूद (1246 से 1226 ई.)
नसिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में समस्त शक्ति बलबन के हाथों में थी। 1249 ई. में उसने बलबन को उलूग खां की उपाधि दी।
इसके शासनकाल में भारतीय मुसलमानों का एक अलग दल बन गया, जो बलबन का विरोधी था। इमादुद्दीन रिहान इस दल का नेता था।
1265 ई, में नसिरुद्दीन की मृत्यु के बाद बलबन ने स्वयं को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया।
तबाकत-ए-नासिरी का लेखक मिन्हाज सिराज नसिरुद्दीन के शासन काल में दिल्ली का मुख्य काजी था।