समाज और कुप्रथा पर निबंध
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हम जहां रहते हैं, जिनके बीच रहते हैं, वह समाज है। समाज मनुष्यों के मिल-जुलकर रहने का स्थान है। व्यक्ति अकेला नहीं रहा सकता। आज व्यक्ति जो भी कुछहै , वह समाज के कारण है। तो व्यक्ति है, उसकाविकास यापतन है। बिना समाज के व्यक्ति की कल्पना नहीं की जा सकती। सभ्यता, संस्कृति, भाषा आदि सब समाज की देन है। समाज में फैली हुई कुरीतियां या कुप्रथांए भी समाज के विकार के कारण है।
समाज की संस्थापना मनुष्य के पारस्परिक विकास के लिए हुई है। मनुष्य इस कारण ही आपसी सहयोग कर सका है ओर ज्ञान तथा विकास की धारा का अक्षुण बनाए रख सकता है। मनुष्य के समूचे विकास का आधार समाज है।
मनुष्य में सदैव सद तथा असद प्रवतियों में संघर्ष चलता रहता है। जब असद प्रवृति वाले मनुष्य समाज के अगुवा बन गए तब सद प्रवति वालों को वे तरह-तरह के उपाय वह नियमोपनियम बनाकर परेशान करने लगे। वे अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए नियमों को तोडऩे लगे और मानव जाति के सामने नवीन सामाजिक व्यवस्था को पेश करने लगे, जो समाज की विसंगतियों और अंतर्विरोधों से संबंध होने के कारण समाज के विकास में व्यवधान पैदा करने वाली सिद्ध हुई। इसी से कुरीतियों को जड़ पकडऩे का अवसर मिला कुरीतियों या कुप्रथाओं को हवा देने का काम धर्म के पुरोधाओं ने शुरू किया। वे धम्र के नाम पर अंधविश्वास फैलाने लगे और परस्पर भेदभाव की दीवार खड़ी करके मानव को मानव का विरोधी बनाने में सफल हुए।
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हम जहां रहते हैं, जिनके बीच रहते हैं, वह समाज है। समाज मनुष्यों के मिल-जुलकर रहने का स्थान है। व्यक्ति अकेला नहीं रहा सकता। आज व्यक्ति जो भी कुछहै , वह समाज के कारण है। तो व्यक्ति है, उसकाविकास यापतन है। बिना समाज के व्यक्ति की कल्पना नहीं की जा सकती। सभ्यता, संस्कृति, भाषा आदि सब समाज की देन है। समाज में फैली हुई कुरीतियां या कुप्रथांए भी समाज के विकार के कारण है।
समाज की संस्थापना मनुष्य के पारस्परिक विकास के लिए हुई है। मनुष्य इस कारण ही आपसी सहयोग कर सका है ओर ज्ञान तथा विकास की धारा का अक्षुण बनाए रख सकता है। मनुष्य के समूचे विकास का आधार समाज है।
मनुष्य में सदैव सद तथा असद प्रवतियों में संघर्ष चलता रहता है। जब असद प्रवृति वाले मनुष्य समाज के अगुवा बन गए तब सद प्रवति वालों को वे तरह-तरह के उपाय वह नियमोपनियम बनाकर परेशान करने लगे। वे अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए नियमों को तोडऩे लगे और मानव जाति के सामने नवीन सामाजिक व्यवस्था को पेश करने लगे, जो समाज की विसंगतियों और अंतर्विरोधों से संबंध होने के कारण समाज के विकास में व्यवधान पैदा करने वाली सिद्ध हुई। इसी से कुरीतियों को जड़ पकडऩे का अवसर मिला कुरीतियों या कुप्रथाओं को हवा देने का काम धर्म के पुरोधाओं ने शुरू किया। वे धम्र के नाम पर अंधविश्वास फैलाने लगे और परस्पर भेदभाव की दीवार खड़ी करके मानव को मानव का विरोधी बनाने में सफल हुए।
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