समाजोपकारी व्यवहार के संप्रत्यय की व्याख्या कीजिए I
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"परोपकार करना, दूसरों की भलाई करना, हमेशा दूसरों के काम आना, लोगों की मदद करते रहना यह एक प्रकार के मानवीय व्यवहार हैं जो मानवीयता का एक हिस्सा है। ऐसे व्यवहार सारे विश्व में प्रचलित हैं। लगभग विश्व के सारे धर्म है यही सिखाते हैं कि हमें सदैव एक दूसरे के काम आना चाहिए दूसरों की हमेशा मदद करनी चाहिए इस व्यवहार को ‘समाजोपकारी व्यवहार’ के नाम से जाना जाता है।
सामाजोपकारी व्यवहार मुख्यतः परहितवाद की अवधारणा पर केंद्रित है । परहितवाद का मतलब है बिना किसी आत्महित के भाव अर्थात बिना किसी स्वार्थ के दूसरों के हित के लिए कार्य करना, उनके कल्याण के बारे सोचना ही समाजोपकारी व्यवहार है।
हमेशा दूसरों की मदद करना दूसरों के साथ अपनी चीजें बांटना, दान करना, किसी की मुसीबत में काम आना, किसी की बीमारी आदि में उसकी देखभाल करना, किसी की आर्थिक मदद करना, दुख की घड़ी में किसी का साथ देना, उसके साथ सहानुभूति करना, उसे सांत्वना देना, संकट में फंसने पर किसी का समर्थन करना आदि समाजोपकारी व्यवहार के अंतर्गत आते हैं।
समाजोपकारी व्यवहार में सदैव दूसरों के काम आना चाहिए और सदैव उसका हित सोचना चाहिये। यह कार्य निस्वार्थ भाव से होना चाहिए और बदले में कुछ पाने की आशा नहीं रखनी चाहिए। यह कार्य स्वेच्छा से करना चाहिए। किसी तरह के दबाव या दिखावे के लिए नहीं करना चाहिये। कभी-कभी किसी अच्छे कार्य करने में स्वयं का कुछ हानि होती हो लेकिन किसी की मदद हो जाती हो और उसका बड़ा कार्य बन जाता हो तो इसके लिये भी तैयार रहना चाहिये।
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