समाज व्यक्ति के सुख-दुख में क्या भूमिका निभाता है? क्या समाज ने भगवाना की बुढ़िया माँ के साथ न्याय किया?
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समाज व्यक्ति के सुख-दुख में समाज नकारात्मक भूमीका अपनाता है| वह व्यक्ति के दुःख को भली-भांति समझने की बजाय उसे पीड़ा पहुँचानें का काम करता है | समाज दुश्मनों जैसा व्यावहार करती है|
समाज ने भगवाना की बुढ़िया माँ के साथ न्याय नहीं किया , उसे सहारा देने की बजाय उसे ताने दिए जाते है | समाज उसकी कोई मदद नहीं करता | उसे बुढ़ापे में भी अपने परिवार को पलने के लिए बहार खरबूजे बेचने जाना पड़ता था |
व्यक्ति के सुख दुख में समाज नारातमक भूमिका अपनाता है वह व्यक्ति के दुख में उसका साथ नहीं देता वह उस व्यक्ति पर टिप्पणियां देता है तथा उसे समझने की कोशिश नहीं करता यदि दुख गरीब का है तो उसे भला बुरा कहता है और यदि अमीर का है तो sath शोक मनाने का दिखावा करता है यह समाज यह निर्धारित करता है कि दुख मनाने का अधिकार केवल अमीरों को ही है और समाज ने भगवाना की बुढ़िया मां के साथ अन्याय किया है