समानता के लिए संघर्ष किन किन समुदायों ने किया है?
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संविधान भी भारत के सभी नागरिकों को एक समान मानता है। संविधान जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, लिंग के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करता। इसलिए तब लोग समानता के लिए संघर्ष करते हैं, संवैधानिक कानून उनके पक्ष में होता है। जब भी समानता के लिए संघर्ष का मामला न्यायालय में जाता है।
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हमारे देश का संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक को समान अधिकारों का आश्वासन देता है। इसके बावजूद भी कुछ समुदायों को समानता के अधिकार के लिए संघर्ष करना पड़ा जो एक मौलिक अधिकार है।
- हर समुदाय में ऐसे लोग होते हैं जिनको गरीब व निर्धन होने के कारण समाज में सम्मान प्राप्त नहीं होता।
- अल्पसंख्यकों, महिलाओं, दलितों और आदिवासी लोगों को भी अक्सर भेदभाव व तिरस्कार का सामना करना पड़ता है।
- दलित, आदिवासी और मुस्लिम लड़कियां अक्सर बड़ी संख्या में स्कूल छोड़ देती हैं।इन समुदायों में गरीबी, सामाजिक भेदभाव और कलाकारों की खराब गुणवत्ता में उचित स्कूलों की कमी एक प्रमुख योगदानकर्ता है।
जाति, लिंग आदि के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करना अनुचित है। हमारे समाज में व्याप्त असमानताओं को समाप्त करना हमारा कर्तव्य है।
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