Samaj ke Kuch Aise Riti riwaz Bataye Jo apko tarksangat nahi lagte. ❤️
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अमिता इंटरव्यू देने जाने के लिए घर से निकली ही थी की एक बिल्ली और वह भी काली बिल्ली ने रास्ता काट दिया। हो गया अपशकुन! थोड़ी और दूर गई ही थी कि एक सहेली ने टोक दिया, ‘अमिता कहां जा रही हो?’ और एक अपशकुन! अमिता कुछ जबाब देती इसके पहले ही सहेली को ज़ोरदार छींक आ गई। अमिता एक मिनट के लिए रुकी, शायद सहेली को दूसरी छींक आ जाए क्योंकि सम संख्या में छींक आना शुभ माना जाता है। किंतु हाय री किस्मत! सहेली को दूसरी छींक आई ही नही। अब अमिता का ओल्ड माइंड बोलने लगा कि इतने अपशकुनों के होते उसे इंटरव्यू देने के लिए नही जाना चाहिए। लेकिन समय का मूल्य समझते हुए वह इंटरव्यू देने गई और नौकरी के लिए चुन भी ली गई। अमिता वर्तमान समय की पढ़ी-लिखी युवती होने से वो पुरानी मान्यताओं, रीति-रिवाजों को नजरअंदाज कर पाई।
रीति-रिवाज़ और नियम दोनों में फर्क है। समाज बिना रीति-रिवाजों के चल सकता है लेकिन बिना नियमों के नही चल सकता। जिन नियमों को हम भावावेश में पकड़े रहते है वे रिवाज़ बन जाते है। जैसे की रास्ते का नियम है कि आप बाएं चलिए। किसी देश में रास्ते का नियम हो सकता है कि आप दाएं चलिए। यह कोई रिवाज नही है। हम अपनी सुविधा के लिए नियम बनाते है। जीवन जीने के लिए नियमों का पालन करना ज़रूरी है लेकिन जब हम इन नियमों को रीति-रिवाज़ बना लेते है और नई पीढ़ी से आशा करते है कि वह बिना किसी तर्क-वितर्क के इन पुराने रीति-रिवाजों को माने तो यह संभव नही है।