Hindi, asked by kahloninderjeet8, 8 months ago

Samaj me aurat ka sthan. Essay in hindi 100-120 words

Answers

Answered by khushigupta5005
3

\huge\bold\star\red{Answer}

भारतीय समाज में नारी का स्थान

प्रस्तावना

मनुस्मृति में नारी के सम्बन्ध में एक उक्ति मिलती है— 'यत्र नार्यस्त पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का निवास रहता है। इस कथन का मन्तव्य है समाज को नारी का आदर करने के लिए प्रेरणा प्रदान करना, क्योंकि जहाँ नारी को आदर-सम्मान दिया जाता है, वहीं सुख, समृद्धि एवं शान्ति रहती है। नर-नारी समाज रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं, यदि इनमें से एक पहिया निकल जाएगा या उसे छोटा-बड़ा कर दिया जाएगा तो गाड़ी नहीं चल पाएगी।

नारी संरक्षणीय है

यह ठीक है कि विधाता ने ही नारी को पुरुष की तुलना में कोमल, संवेदनशील बनाया है अतः उसका क्षेत्र पुरुषों से अलग है। इसीलिए वह पुरुष के संरक्षण में जीवन पर्यन्त रहती है :

पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने।

पुत्रश्च स्थविरे भारे न स्त्री स्वातन्त्र्य महंति॥

अर्थात् पिता बचपन में रक्षा करता है, पति युवावस्था में रक्षा करता है और पुत्र वृद्धावस्था में नारी का भार वहन करता है- इस प्रकार स्त्री जीवन में कभी स्वतन्त्र नहीं रहती। नारी के सम्बन्ध में यह कथन उसके जीवन की विडम्बना को व्यक्त करता है, किन्तु यह सत्य के अत्यन्त निकट है।

प्राचीन काल में नारी का स्थान

प्राचीन काल में भारतीय समाज में नारी को महत्व प्रदान किया जाता रहा है। उपनिषदों में अर्द्धनारीश्वर की विलक्षण कल्पना करते हुए नारी को पुरुष की पूरक मानकर उसके महत्व को प्रतिपादित किया गया। धार्मिक अनुष्ठान बिना पत्नी के अधूरे माने जाते थे इसीलिए राम ने अश्वमेध यज्ञ के समय सीता की स्वर्ण प्रतिमा बनवाई।

प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का भी विधान था। इसका प्रमाण हैं वे विदुषी नारियां- मैत्रेयी, गार्गी, मदालसा, अनुसूया, आदि जिन्होंने बड़े-बड़े विद्वानों को भी परास्त किया। सीता, सावित्री, शकुन्तला को नारी रत्न माना गया जिन्होंने अपने कार्य एवं व्यवहार से संसार के समक्ष आदर्श उपस्थित किया। महाकवि कालिदास ने नारी की सामाजिक भूमिका का उल्लेख करते हुए उसे 'गृहिणी, सचिवः प्रिय सखी' कहा है। प्राचीन भारत में नारी को अनेक अधिकार प्राप्त थे। वे स्वेच्छा से 'वर' चुनती थीं, स्वयंवर प्रथा इसका प्रमाण है।

मध्यकाल में नारी का स्थान

मध्यकाल में आकर नारी की स्थिति शोचनीय हो गई। उसे घर की चहारदीवारी में बन्द होने को विवश होना पड़ा, क्योंकि बाह्य आक्रान्ताओं के कारण उसका सतीत्व खतरे में पड़ गया था। मुसलमानों का शासन स्थापित हो जाने पर देश में पर्दा प्रथा का प्रचलन हुआ और नारी की स्वतन्त्रता पर अकुश लग गया। उसे यथासम्भव घर के कामकाज तक सीमित कर दिया गया, परिणामतः उसका तेज एवं गौरव लुप्त हो गया। वह पुरुष की वासनापूर्ति का साधन मात्र बनकर उपभोग की वस्तु बन गई।

बाल विवाह, सती प्रथा, एवं पदो प्रथा जसी सामाजिक बुराइयों का जन्म भी इसी काल में हआ। अल्पायु में ही उसे विवाह बन्धन में बांध दिया जाता था, अतः नारी-शिक्षा की ओर भी ध्यान कम हो गया। पति की मृत्यु हो जाने पर उसे जीते जी चिता में जलने को विवश कर दिया जाता था। समाज में विधवा स्त्री की दशा पशुओं से भी बदतर थी। वह न तो श्रंगार कर सकती थी और न ही पौष्टिक भोजन ले सकती थी। पिता अथवा पति की सम्पत्ति की उत्तराधिकारिणी भी वह नहीं बन सकती थी।......☺

Similar questions