samarpan poem in hindi
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Answer:
तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित।
आँखों को, गर पढ़ सके तो, तुझको ये जीवन समर्पित।
प्राण में बस जाए गर तू, ले तुझे यौवन समर्पित।
तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित।
भाई के जब, साथ में, भाई गया तो ठीक ही था,
रघुकुल की, रीत की, जिसपे चला वो लीक ही था।
राम के जब, साथ में, सीता का जाना नीति संगत,
तो उर्मिला के, तप की वेदी, पे पूरी रामायण समर्पित।
तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित।
रुक्मिणी के, भाई को, लगता था कान्हा है आवारा।
कृष्णा के घर, उसकी डोली, जाए था उसे नागवारा।
पर रुक्मिणी के, भाग्य में, त्रिलोक पटरानी लिखा था।
तो रुक्मिणी की प्यार और संघर्ष पे जन-जन समर्पित।
तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित।
बात अब, करते हैं तुझसे, सुन मेरी किस्मत की रेखा।
किस लिए, हम-तुम मिले थे, क्यों न तूने ये भी देखा।
प्यार के, उपवन का माली, पौधों को स्वयं ही सुखा दे।
तू नयन जल से, सींच यारी, तो तुझे उपवन समर्पित।
तन समर्पित, मन समर्पित , तुझको अपनापन समर्पित।
प्राण में बस जाए गर तू, ले तुझे यौवन समर्पित।
तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित।
Explanation:
तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित।
आँखों को, गर पढ़ सके तो, तुझको ये जीवन समर्पित।
प्राण में बस जाए गर तू, ले तुझे यौवन समर्पित।
तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित।
भाई के जब, साथ में, भाई गया तो ठीक ही था,
रघुकुल की, रीत की, जिसपे चला वो लीक ही था।
राम के जब, साथ में, सीता का जाना नीति संगत,
तो उर्मिला के, तप की वेदी, पे पूरी रामायण समर्पित।
तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित।
रुक्मिणी के, भाई को, लगता था कान्हा है आवारा।
कृष्णा के घर, उसकी डोली, जाए था उसे नागवारा।
पर रुक्मिणी के, भाग्य में, त्रिलोक पटरानी लिखा था।
तो रुक्मिणी की प्यार और संघर्ष पे जन-जन समर्पित।
तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित।
बात अब, करते हैं तुझसे, सुन मेरी किस्मत की रेखा।
किस लिए, हम-तुम मिले थे, क्यों न तूने ये भी देखा।
प्यार के, उपवन का माली, पौधों को स्वयं ही सुखा दे।
तू नयन जल से, सींच यारी, तो तुझे उपवन समर्पित।
तन समर्पित, मन समर्पित , तुझको अपनापन समर्पित।
प्राण में बस जाए गर तू, ले तुझे यौवन समर्पित।
तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित।