Samay kahani ka sharansh
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समय कहानी यशपाल जी द्वारा लिखी गयी है .समय कहानी की कथावस्तु एक ऐसे व्यक्ति पापा से जुड़ा है जो अपनी नौकरी से अवकाश प्राप्त करने वाले हैं .इनका विचार है कि अवकाश प्राप्त करने के बाद जीवन अत्यंत सुखद और आरामदायक होता है क्योंकि कहीं भी आने जाने और किसी से मिलने जुलने का पर्याप्त अवसर रहता है .मजबूरी और आदर्श पालन से मुक्ति जाती है .उनकी समझ में यह नहीं आता कि सेवा से अवकाश प्राप्त करने के बाद लोग निरुत्साहित क्यों हो जाते हैं .
यशपाल
कहानी के नायक पापा को बुढ़ापा और बूढों से विरक्ति है .अतः अपने लिए स्वयं चिंतित रहते हैं कि कोई उनके व्यवहार व वेशभूषा से उन्हें बुढा न समझे .यही कारण था कि वह हमेशा अपनी पत्नी को साथ लेकर बाज़ार जाते और अपनी छड़ी कभी भी बाज़ार जाते समय हाथ नहीं लगाते थे . पत्नी के साथ न होने पर किसी न किसी लड़के अथवा लड़की को ही लेकर बाज़ार घूमने निकलते थे .लेकिन वह स्थिति अधिक समय तक नहीं रहती .समय के प्रभाव ने उन्हें वृद्धावस्था स्वीकार के लिए बाध्य कर दिया .जब वह बच्चों के मुख से यह सुनते हैं कि बूढों के साथ कौन बाज़ार जाकर बोर होगा तो उन्हें अचानक अपनी स्थिति का बोध होता है .बच्चों को बाज़ार तक साथ ले जाने का रहस्य था कि उनकी आँखों की रोशनी कम हो गयी थी .चलने फिरने में उन्हें कठिनाई होती थी .परन्तु अब बच्चे समय के साथ साथ बड़े हो गए हैं .अब उन्हें बूढ़े पापा के साथ बाज़ार जाना अच्छा नहीं लगता है .अंत में समय द्वारा पराजित पापा छड़ी का सहारा लेकर बाज़ार जाना स्वीकार कर लेते हैं .
इस कहानी के माध्यम से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि समय के आगे किसी का कोई अधिकार नहीं चलता है .