समय का महत्व तुलसी ने कैसे बताया है
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अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?
अर्थात जितना प्रेम मेरे इस हाड-मांस के बने शरीर से कर रहे हो, उतना स्नेह यदि प्रभु राम से करते, तो तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती.
तुलसीदास जी को महर्षि वाल्मीकि का भी अवतार माना जाता है जो मूल आदिकाव्य रामायण के रचयिता थे. श्रीराम जी को समर्पित ग्रन्थ श्री रामचरितमानस वाल्मीकि रामायण का प्रकारांतर से अवधी भाषांतर था जिसे समस्त उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है.
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