samvad on sampradayikta
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सभा के अध्यक्ष मण्डल में शामिल थे खगेन्द्र मण्डल, ओपी मालवीय, अकील रिजवी, प्रो. राजेंद्र कुमार, गौहर रजा, कॉ. जियाउल हक, चौथीराम यादव, राजेंद्र राजन और हरीशचंद्र पाण्डे।
देश भर से आए साहित्यकारों का स्वागत करते हुए, संतोष भदौरिया जी ने कहा कि जिस तरह से फिरकापरस्त ताकतें मजबूत हुई हैं और हम भाइयों के बीच भेद-भाव पैदा करने की कोशिश की जा रही है, उसका ताजा उदाहरण मुजफ्फरनगर की घटना है। उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा कि, जब-जब ऐसे हालात पैदा हुए हैं उसके विरोध में हम लेखक बंधुओं, संस्कृति कर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और हम उसी क्रम में आज यहां एकट्ठा हुए हैं।
संजय श्रीवास्तव ने अपनी बात रखते हुए कहा कि यह केवल कुछ लेखक संगठनों का कार्यक्रम नहीं है। यह उस आंदोलन का एक भाग है जिसने दुनिया बदली। हम सत्ता विरोधी हैं, हम यथास्थितिवाद के विरोधी हैं। यह प्रगतिशील आंदोलन बहुत महत्वपूर्ण है और यह ऐतिहासिक होगा, ऐसा हम उम्मीद करते हैं।
राकेश जी के अनुसार, हम लोग कुछ नया नहीं करने जा रहे हैं। जो हो चुका है, उसको बस दोहराने भर जा रहे हैं। मुंशी प्रेमचन्द ने कहा था कि साम्प्रदायिकता संस्कृति का चोला ओढ़ कर आती है लेकिन अब तो इसने विकास का चमचमाता दुशाला भी ओढ़ लिया है। साथ ही राकेश जी ने आत्मावलोकन पर जोर देते हुए कहा कि कहीं ना कहीं हम बेसुरे और बेताले होते जा रहे हैं।
शकील सिद्दीकी ने कहा कि प्रतिरोध की संस्कृति और अभियान के जनसम्वाद जरूरी है। साम्प्रदायिकता लड़ने से नहीं बल्कि लोगों से संवाद, लोगों को समझने और उनकी सोच को बदलने से कमजोर होगी। आज सम्प्रदायिक ताकतों का सारे संचार माध्यमों पर, जो कि जन संवाद के माध्यम हैं, कब्जा है। मुनाफाखोर शक्तियाँ, लूटने वाली शक्तियाँ हमारे बीच की खाई को बढ़ावा दे रही हैं। ऐसी स्थिति में हमें एक जुट हो कर नई रणनीति बनाने की जरूरत है।
उज्ज्वल भट्टाचार्या ने कहा कि दरअसल साम्प्रदायिकता एक ऐसा सवाल है जो भारत से बाहर अपना अर्थ नहीं रखती। वास्तव में यह पहचान की समस्या है। धर्म, लिंग और जाति पर आधारित पहचान समाज में बंटवारे को जन्म देती है। साम्प्रदायिकता के बढ़ते दायरे की ओर इशारा करते हुए भट्टाचार्या जी ने अपनी बात रखी कि कॉर्पोरेट घराने जिस प्रकार से राजनीति का ध्रुवीकरण कर रहे हैं ये सारी चीजें हमें दिखाती हैं कि साम्प्रदायिकता के सवाल के साथ इन सारे सवालों के साथ जोड़ कर देखे जाने की आवश्यकता है। ताज्जुब होता है कि इस देश ने महंगाई के खिलाफ कोई लड़ाई नहीं शुरू की जिसकी सख्त आवश्यकता है।