Sana Sana Hath Jodi summary in 20 word .
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यह पाठ मधु कांकरिया द्वारा लिखा एक यात्रा वृत्तांत है जिसमें लेखिका ने सिक्किम की राजधानी गैंगटॉक और उसके आगे हिमालय की यात्रा का वर्णन किया है जो शहरों की भागमभाग भरी ज़िं दगी से दूर है| लेखिका गैंगटॉक को मेहनती बादशाहों का शहर बताती हैं क्योंकि वहाँ के सभी लोग बड़े ही मेहनती हैं। वहाँ तारों से भरे आसमान में लेखिका को सम्मोहन महसूस होता है जिसमें वह खो जाती हैं। वह नेपाली युवती द्वारा बताई गई प्रार्थना ‘मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो’ को गाती हैं|
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अगले दिन मौसम साफ न होने के कारण लेखिका कंचनजंघा की चोटी तो नहीं देख सकी, परंतु ढेरों खिले फूल देखकर खुश हो जाती हैं। वह उसी दिन गैंगटाॅक से 149 किलोमीटर दूर यूमथांग देखने अपनी सहयात्री मणि और गाइड जितेन नार्गे के साथ रवाना होती हैं। गंगटोक से यूमथांग को निकलते ही लेखिका को एक कतार में लगी सफेद-सफेद बौद्ध पताकाएँ दिखाई देती हैं जो ध्वज की तरह फहरा रही थीं।ये शान्ति और अहिंसा की प्रतीक थीं और उन पताकाओं पर मंत्र लिखे हुए थे। लेखिका के गाइड ने उन्हें बताया कि जब किसी बौद्ध मतावलम्बी की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी भी पवित्र स्थान पर एक सौ आठ श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। इन्हें उतारा नहीं जाता है, ये खुद नष्ट हो जाती हैं। कई बार नए शुभ कार्य की शुरुआत में भी रंगीन पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। जितेन ने बताया कि कवी-लोंग स्टॉक नामक स्थान पर 'गाइड' फ़िल्म की शूटिंग हुई थी। जैसे-जैसे वे लोग ऊँचाई की ओर बढ़ने लगे, वैसे-वैसे बाजार, लोग और बस्तियाँ आँखों से ओझल होने लगी। घाटियों में देखने पर सबकुछ धुंधला दिखाई दे रहा था। उन्हें हिमालय पल-पल परिवर्तित होते महसूस होता है| वह विशाल लगने लगता है|
'सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल' पर जीप रुकती है। सभी लोग वहाँ की सुंदरता को कैमरे में कैद करने लग जाते हैं| झरने का पानी में लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे वह उनके अंदर की सारी बुराईयाँ और दुष्टता को भाकर ले जा रहा हो| रास्ते में प्राकृतिक दृश्य पलपल अपना रंग ऐसे बदल रहे थे जैसे कोई जादू की छड़ी घुमाकर सबकुछ बदल रहा था। थोड़ी देर के लिए जीप 'थिंक ग्रीन' लिखे शब्दों के पास रुकी। वहाँ सभी कुछ एक साथ सामने था। लगातार बहते झरने थे, नीचे पूरे वेग से बह रही तिस्ता नदी थी, सामने धुंध थी, ऊपर आसमान में बादल थे और धीरेधीरे हवा चल रही थी, जो आस-पास के वातावरण में खिले फूलों की हँसी चारों ओर बिखेर रही थी। कुछ औरतों की पीठ पर बँधी टोकरियों में बच्चे थे। इतने सुंदर वातावरण में भूख, गरीबी और मौत के निर्मम दृश्य ने लेखिका को सहमा दिया। एक कर्मचारी ने बताया कि ये पहाडिनें पहाड़ी रास्ते को चौड़ा बना रही हैं। कई बार काम करते समय किसी-न-किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है क्योंकि जब पहाड़ों को डायनामाइट से उड़ाया जाता है तो उनके टुकड़े इधर-उधर गिरते हैं। यदि उस समय सावधानी न बरती जाए, तो जानलेवा हादसा घट जाता है।
आगे चलने पर रास्ते में बहुत सारे पहाड़ी स्कूली बच्चे मिलते हैं। जितेन बताता है कि ये बच्चे तीन-साढ़े तीन किलोमीटर की पहाड़ी चढ़ाई चढ़कर स्कूल जाते हैं। ये बच्चे स्कूल से लौटकर अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ का जीवन बहुत कठोर है। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे खतरे भी बढ़ते जा रहे थे। रास्ता तंग होता जा रहा था। सरकार की 'गाड़ी धीरे चलाएँ' की चेतावनियों के बोर्ड लगे थे। शाम के समय जीप चाय बागानों में से गुजर रही थी। बागानों में कुछ युवतियाँ सिक्किमी परिधान पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। चारों ओर इंद्रधनुषी रंग छटा बिखेर रहे थे। यूमथांग पहुंचने से पहले वे लोग लायुंग रुके। लायुंग में लकड़ी से बने छोटे-छोटे घर थे। लायुंग में अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब था। लेखिका को वहाँ बर्फ़ देखने की इच्छा थी परंतु वहाँ बर्फ कहीं भी नहीं थी|
एक स्थानीय युवक के अनुसार प्रदूषण के कारण यहाँ स्नोफॉल कम हो गया था। 'कटाओ' में बर्फ़ देखने को मिल सकती है। कटाओ' को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है। मणि जिसने स्विट्ज़रलैंड घुमा था ने कहा कि यह स्विट्जरलैंड से भी सुंदर है। कटाओ को अभी तक टूरिस्ट स्पॉट नहीं बनाया गया था, इसलिए यह अब तक अपने प्राकृतिक स्वरूप में था। लायुंग से कटाओ का सफ़र दो घंटे का था। कटाओ का रास्ता खतरनाक था। जितेन अंदाज से गाड़ी चला रहा था। चारों ओर बर्फ से भरे पहाड़ थे। कटाओ पहुँचने पर हल्की -हल्की बर्फ पड़ने लगी थी। सभी सहयात्री वहाँ के वातावरण में फोटो खिंचवा रहे थे। लेखिका वहाँ के वातावरण को अपनी साँसों में समा लेना चाहती थी।
थोड़ा आगे जाने पर फ़ौजी छावनियाँ दिखाई दी चूँकि यह बॉर्डर एरिया था और थोड़ी ही दूर पर चीन की सीमा थी। लेखिका फ़ौजियों को देखकर उदास हो गई। वैशाख के महीने में भी वहाँ बहुत ठंड थी। वे लोग पौष और माघ की ठंड में किस तरह रहते होंगे? वहाँ जाने का रास्ता भी बहुत खतरनाक था। कटाओं से यूमथांग की ओर जाते हुए प्रियुता और रूडोडेंड्रो ने फूलों की घाटी को भी देखा। यूमथांग कटाओ जैसा सुंदर नहीं था। जितेन ने रास्ते में बताया कि यहाँ पर बंदर का माँस भी खाया जाता है। बंदर का माँस खाने से कैंसर नहीं होता।
मणि ने बताया कि पहाड़ी कुत्ते केवल चाँदनी रातों में भौंकते हैं। यह सुनकर लेखिका हैरान रह गई। उसे लगा कि पहाड़ी कुत्तों पर भी ज्वारभाटे की तरह पूर्णिमा की चाँदनी का प्रभाव पड़ता है।
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OM!
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Happy holi to you and your family