सन सन सन सन सनन सनन, गाता फिरता गीत पवन
उड़ते हैं पंछी सैलानी, खिलता शालीमार चमन
भ्रमर बजाते शहनाई, किरनों की मालिन आई
झील किनारे वह डलिया भर धूप बिखेरे बजरी में
जंगल-जंगल होड़ लगी है तितली और टिटिहरी है
कभी हवा आ जाती है, नयी गजल गा जाती है
तब मखमली गलीचों पर कुछ मस्ती-सी छा जाती है
मौसम कभी बदलता है, सपना कभी मचलता है
चरवाहे की वंशी छिड़ती, नील गगन की छतरी में
पलछिन किसी बहाने से, गुजरे हुए जमाने से
बस्ती करती बात जहाँ है, दूर खड़े वीराने से
चश्मे जहाँ हिमानी हैं, फूल जहाँ रूमानी हैं
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