Hindi, asked by Malikwaseem2573, 1 month ago

सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए-
(क) वह जालपा, जो अपने घर बात-बात पर मान
किया करती थी, अब सेवा त्याग और सहिष्णुता
की मूर्ति थी। जग्गो मना करती रहती, पर वह मुंह
अंधेरे सारे घर में
झाडू लगा आती, चौका-बर्तन
कर डालती। आटा गूंथकर रख देती, चूल्हा जला​देती । तब बुढ़िया का काम केवल रोटियां सेकना था

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Answered by pandeydevannshi
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Answer:

ये पंक्तियां प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास 'गबन' से ली गई है। यह एक यथार्थवादी उपन्यास है।

इस उपन्यास की नायिका, जालपा, एक चन्द्रहार पाने के लिए लालायित है। उसका पति कम वेतन वाला क्लर्क है यद्यपि वह अपनी पत्नी के सामने बहुत अमीर होने का अभिनय करता है। अपनी पत्नी को संतुष्ट करने के लिए वह अपने दफ्तर से ग़बन करता है और भागकर कलकत्ता चला जाता है जहां एक कुंजड़ा और उसकी पत्नी उसे शरण देते हैं। डकैती के एक जाली मामले में पुलिस उसे फंसाकर मुखबिर की भूमिका में प्रस्तुत करती है।

उसकी पत्नी परिताप से भरी कलकत्ता आती है और उसे जेल से निकालने में सहायक होती है। वस्तुतः जालपा का चरित्र दुर्गुणों एवं दुर्बलताओं से गुणों एवं सफलता की ओर उन्मुख होता है।जब उसे पता चलता है कि रमानाथ ने अपने स्वार्थ-सिद्ध के लिए कई सारे निर्दोष लोगों के खिलाफ अदालत में गवाही दी है। उसे यह बिलकुल स्वीकार नहीं था कि रमानाथ किसी निर्दोष को सजा दिलवाकर धन और वैभव हासिल करे और जालपा को गहने बनवा कर दे।

वह अपने-आप को खतरें में डालकर भी रमानाथ को इस गलत काम को करने से रोकने की कोशिश करती है। वह उस सभी तथा कथित डाकूओं की खोज-खबर निकाल लेती है जिनको रमानाथ की झूठी गवाही द्वारा फाँसी की सजा तथा जेल हो जाती है।

वह जालपा, जो अपने घर बात-बात पर मान

किया करती थी, अब सेवा त्याग और सहिष्णुता

की मूर्ति थी। जग्गो मना करती रहती, पर वह मुंह

अंधेरे सारे घर में

झाडू लगा आती, चौका-बर्तन

कर डालती। आटा गूंथकर रख देती, चूल्हा जलादेती । तब बुढ़िया का काम केवल रोटियां सेकना था

अर्थ --गाँव के जमींदार के मुख़्तार महाशय दीनदयाल और मानकी की इकलौती पुत्री जालपा अपने घर बात-बात पर मान किया करती थी, वह किस प्रकार अपने पति के स्वार्थपूर्ण कर्मों के कारण त्याग और सहिष्णुता की मूर्ति बन गई थी। वह दिनेश नामक स्कूल-मास्टर की सेवा करने लग जाती है। जालपा को यह बिलकुल स्वीकार नहीं था कि किसी के खून से अपने आराम का महल तैयार हो। वह अंत तक अपने सद्-व्यवहार से सबका मन मोह लेती है। वस्तुतः इन पंक्तियों से ही जालपा का चरित्र दुर्गुणों एवं दुर्बलताओं से गुणों एवं सफलता की ओर उन्मुख होता है।

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