सन्दर्भ सहित
व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट
कीजिए-
पुर ते निकसी रघुवीर-बधू, धरि धीर दए मग में डग द्वै।
झलकी भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गये मधुराधर वै।।
फिर बूझति है-"चलनो अब केतिक पर्णकुटी करिहौ कित हौ।
तिय की लखि आतुरता पिय की अखिया अति चारू चली
जल ज्वै
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