India Languages, asked by mdruhulamin62011, 6 months ago

सन्धि,(दीर्ध,गुण)प्रत्यय(क्त्वा,तुमुन) धातु रुप(पठ्,गम्,लट्,लृट् लकार,
कारक​

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Answered by riyariya40
1

Answer:

here is ur answer

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Explanation:

Earth is the fifth largest of the planets in the solar system. It's smaller than the four gas giants — Jupiter, Saturn, Uranus and Neptune — but larger than the three other rocky planets, Mercury, Mars and Venus.

Earth has a diameter of roughly 8,000 miles (13,000 kilometers) and is round because gravity pulls matter into a ball. But, it's not perfectly round. Earth is really an "oblate spheroid," because its spin causes it to be squashed at its poles and swollen at the equator.

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Answered by ak8640940
3

Answer:

उपसर्गाः

अधोदत्तानि पदानि अवलोकयत-(निम्नलिखित पदों को देखिए-)

NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 9 उपसर्गाः प्रत्ययाः च

खण्ड (क) तथा (ख) में आए पदों का विश्लेषण करने पर स्पष्ट है कि उपसर्ग पद (संज्ञापद अथवा क्रियापद) के आदि और प्रत्यय पद के अन्त में लगते हैं। स्वतन्त्र रूप से इनका कोई प्रयोग नहीं होता

और न ही कोई अर्थ। ये पद के साथ जुड़कर बहुधा अर्थ में परिवर्तन ला देते हैं।

प्रायः प्रयोग में आने वाले कुछ उपसर्ग

प्र, परा, परि, प्रति, उप, अप, अव, नि:, दुः, सु, वि, ओ, अनु, सम् आदि।

प्रत्ययाः

अधोदत्तानि वाक्यानि अवलोकयत(नीचे दिए गए वाक्यों को देखिए-)

1. सः प्रातः पठितुम् विद्यालयम् गच्छति। पठ् + तुमुन्-पठितुम् (पढ़ने के लिए- to study)

2. अहं प्रश्नं पठित्वा उत्तरं लिखामि। पठ् + क्त्वा-पठित्वा (पढ़कर—having read)

3. सः पाठम् पठितवान्। पठ् + क्तवतु-पठितवान् (पढ़ा-read)

4. तेन पाठः पठितः । पठ् + क्त-पठितः (पढ़ा गया-has been read)

5. तेन पाठः पठितव्यः। पठ्+तव्यत्-पठितव्यः (पढ़ा जाना चाहिए-shouldberead)

संस्कृत भाषा में धातु में प्रत्यय जोड़कर अनेक शब्द बनाए जा सकते हैं। उपरिलिखित वाक्यों में स्थूलाक्षरों में आए शब्द पठ् धातु से बने हैं। इस प्रकार अन्य धातुओं से भी शब्दों का निर्माण होता है; किन्तु इस कक्षा में हम क्त्वा, तुमुन् तथा ल्यप् प्रत्यय पर ही ध्यान केन्द्रित करेंगे।

(In Sanskrit, we can form many words from a single root by adding suffixes. In the sentences given above words in bold have been formed from the root पठ्. Similarly we can form words from other roots too. But we will focus only on कत्वा, तुमुन्., and ल्यप् suffixes in this class.)

तुमुन् प्रयोगः

किं त्वं विद्यालयम् गन्तुम् सज्जः असि? गन्तुम् (गम् + तुमुन्) – जाने के लिए, to go

रामः रावणं हन्तुम् वाणम् अमुञ्चत् । हन्तुम् (हन् + तुमुन्) – मारने के लिए, to kill

अहं तीव्र धावितुम् न शक्नोमि। धावितुम् (धाव+ तुमुन्) – दौड़ने के लिए, to run

अहम् एकं प्रश्न प्रष्टुम् इच्छामि। प्रष्टुम् (प्रच्छ् + तुमुन्) – पूछने के लिए, to ask

सा शीतं पेयं पातुम् इच्छति । पातुम् (पा + तुमुन्) – पीने के लिए, to drink

जब एक क्रिया के उद्देश्य से दूसरी क्रिया की जाती है पहली क्रिया को दर्शाने के लिए ‘तुमुन्’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है; यथा-‘सः पठितुम् विद्यालयम् गच्छति’-वाक्य में पढ़ने के उद्देश्य से जाने की क्रिया की जा रही है।

स्मरणीयम् ।

धातु में ‘तुमुन्’ जुड़ने पर केवल ‘तुम्’ शेष रह जाता है।

‘तुमुन्’ जुड़ने पर कुछ धातुओं में धातु के साथ ‘इ’ जुड़ जाता है; यथा-पठितुम्, खादितुम्, धावितुम्, रक्षितुम्, कथयितुम् इत्यादि, किन्तु कुछ धातुओं में ‘इ’ नहीं लगता; यथा-गन्तुम्, हन्तुम् कर्तुम्, पातुम्, दातुम् इत्यादि।

क्वा-प्रयोगः

अधोदत्तं संवादं पठत-(नीचे दिए गए संवाद को पढ़िए-)

पिता – राहुल: कुत्र अस्ति ? किं सः अधुना अपि क्रीडति ?

माता – पश्यतु, सः क्रीडित्वा आगच्छति ।

पिता – सः विद्यालय-कार्यं कदा करोति ?

माता – सः प्रतिदिनं कार्यं कृत्वा क्रीडितुम् गच्छति ।

पिता – पुत्र राहुल, मध्याह्न भोजनं खादित्वा किं करोषि?

राहुलः – भोजनम् खादित्वा विश्रामं करोमि। तत्पश्चात् अभ्यास-कार्यं करोमि।

पिता – अधुना किं करिष्यसि? ।

राहुल: – दूरदर्शनेन धारावाहिकं दृष्ट्वा भोजनं खादिष्यामि।

उपरिलिखित संवाद में स्थूल अक्षरों में आए शब्द-क्रीडित्वा, कृत्वा, खदित्वा, दृष्ट्वा- क्त्वा प्रत्ययान्त हैं जो क्रमश: क्रीड्, कृ, खाद् और दृश् धातु में क्त्वा प्रत्यय जोड़कर बने हैं। क्त्वा’ का प्रयोग पूर्वकालिक क्रिया को दर्शाने के लिए किया जाता है। |

(In the sentences above the words in bold letters—क्रीडित्वा, कृत्वा, खादित्वा, दृष्ट्वा have been formed by adding क्त्वा प्रत्यय to the roots क्रीड्, कृ, खाद्, दृश् respectively.‘क्त्वा’ is used to denote an action done prior to the other action that follows.

अवधेयम्- क्त्वा प्रत्यय का केवल ‘त्वा’ शेष रह जाता है; यथा-कृ + त्वा (क्त्वा) = कृत्वा ।

(Only ‘त्वा’ remains of the suffix Fall, when added to the root.)

ल्यप् प्रयोगः

जिस अर्थ में धातु में क्त्वा प्रत्यय जोड़ा जाता है, ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग भी उसी अर्थ में होता है, किन्तु ‘ल्यप् प्रत्यय केवल उपसर्गपूर्वक धातुओं में जोड़ा जाता है।

[Suffix ल्यप् is added to the root in the same sense as the suffix कत्वा. But the suffix ‘ल्यप्’ is added only to roots preceded by a prefix.]

यथ- हस् + क्त्वा = हसित्वा ।

वि + हस् + ल्यप् = विहस्य

सः विहस्य अवदत्।।

विद्यालयात् आगत्य अहं भोजनं खादामि।

पुरस्कारम् आदाय विष्णुशर्मा प्रसन्नः अभवत् ।

एतत् विचिन्त्य सः दुःखितः अभवत्।

पुत्रस्य परिणाम-पत्रं वीक्ष्य पिता विषादग्रस्तः आसीत्।

अब हम उपर्युक्त रेखांकित शब्दों के उपसर्ग, मूलशब्द और प्रत्यय देखते हैं-

विहस्य- (वि + हस् + ल्यप्), (थोड़ा) हँसकर, having laughed (a little)

आगत्य- (आ + गम् + ल्यप्), आकर, having come

आदाय- (आ + दा + ल्यप्), लेकर, having taken

विचिन्त्य-(वि + चिन्त् + ल्यप्), सोचकर, having thought

वीक्ष्य- (वि + ईक्ष् + ल्यप्), देखकर, having seen

अवधेयम्- धातु में जुड़ने पर ल्यप् प्रत्यय का केवल ‘य’ शेष रह जाता है; यथा-आ + दा + य (ल्यप्) = आदाय। (Only’य’ remains of the suffix ल्यप् when added to the root.)

वास्तव में क्त्वा, तुमुन्, ल्यप् प्रत्ययान्त शब्दों का प्रयोग दो सरल वाक्य को जोड़ने हेतु किया जाता है।

यथा-

Explanation:

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