India Languages, asked by veerct205, 6 months ago

sandhi
व्याघ्रो नष्टः -

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Answered by gurmukhsingh1192
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संधि की परिभाषा

दो वर्णों (स्वर या व्यंजन) के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं। 

दूसरे अर्थ में- संधि का सामान्य अर्थ है मेल। इसमें दो अक्षर मिलने से तीसरे शब्द की रचना होती है, इसी को संधि कहते हैै।

सरल शब्दों में- दो शब्दों या शब्दांशों के मिलने से नया शब्द बनने पर उनके निकटवर्ती वर्णों में होने वाले परिवर्तन या विकार को संधि कहते हैं।

संधि का शाब्दिक अर्थ है- मेल या समझौता। जब दो वर्णों का मिलन अत्यन्त निकटता के कारण होता है तब उनमें कोई-न-कोई परिवर्तन होता है और वही परिवर्तन संधि के नाम से जाना जाता है।

संधि विच्छेद- उन पदों को मूल रूप में पृथक कर देना संधि विच्छेद हैै।

जैसे- हिम + आलय= हिमालय (यह संधि है), अत्यधिक= अति + अधिक (यह संधि विच्छेद है)

यथा + उचित= यथोचित

यशः + इच्छा= यशइच्छ

अखि + ईश्वर= अखिलेश्वर

आत्मा + उत्सर्ग= आत्मोत्सर्ग

महा + ऋषि= महर्षि

लोक + उक्ति= लोकोक्ति

संधि निरथर्क अक्षरों मिलकर सार्थक शब्द बनती है। संधि में प्रायः शब्द का रूप छोटा हो जाता है। संधि संस्कृत का शब्द है।

संधि के भेद

वर्णों के आधार पर संधि के तीन भेद है-

(1)स्वर संधि (vowel sandhi)

(2)व्यंजन संधि (Combination of Consonants)

(3)विसर्ग संधि (Combination Of Visarga)

(1)स्वर संधि (vowel sandhi) :- दो स्वरों से उत्पत्र विकार अथवा रूप-परिवर्तन को स्वर संधि कहते है।

दूसरे शब्दों में- ''स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मेल से जो विकार उत्पत्र होता है, उसे 'स्वर संधि' कहते हैं।''

जैसे- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी, सूर्य + उदय = सूर्योदय, मुनि + इंद्र = मुनीन्द्र, कवि + ईश्वर = कवीश्वर,

महा + ईश = महेश

इनके पाँच भेद होते है -

(i)दीर्घ संधि 

(ii)गुण संधि 

(iii)वृद्धि संधि 

(iv)यण संधि

(v)अयादी संधि

(i)दीर्घ संधि- जब दो सवर्ण, ह्रस्व या दीर्घ, स्वरों का मेल होता है तो वे दीर्घ सवर्ण स्वर बन जाते हैं। इसे दीर्घ स्वर-संधि कहते हैं।

नियम- दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते है। यदि 'अ'',' 'आ', 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ' और 'ऋ'के बाद वे ही ह्स्व या दीर्घ स्वर आये, तो दोनों मिलकर क्रमशः 'आ', 'ई', 'ऊ', 'ऋ' हो जाते है। जैसे-

अ + अ= आअत्र + अभाव= अत्राभाव

कोण + अर्क= कोणार्कअ + आ= आशिव + आलय= शिवालय 

भोजन + आलय= भोजनालयआ + अ= आविद्या + अर्थी= विद्यार्थी

लज्जा + अभाव= लज्जाभावआ + आ= आविद्या + आलय= विद्यालय

महा + आशय= महाशयइ + इ= ईगिरि + इन्द्र= गिरीन्द्रइ + ई= ईगिरि + ईश= गिरीशई + इ= ईमही + इन्द्र= महीन्द्रई + ई= ईपृथ्वी + ईश= पृथ्वीशउ + उ= ऊभानु + उदय= भानूदयऊ + उ= ऊस्वयम्भू + उदय= स्वयम्भूदयऋ + ऋ= ऋपितृ + ऋण= पितृण

(ii) गुण संधि- अ, आ के साथ इ, ई का मेल होने पर 'ए'; उ, ऊ का मेल होने पर 'ओ'; तथा ऋ का मेल होने पर 'अर्' हो जाने का नाम गुण संधि है। 

जैसे-

अ + इ= एदेव + इन्द्र= देवन्द्रअ + ई= एदेव + ईश= देवेशआ + इ= एमहा + इन्द्र= महेन्द्रअ + उ= ओचन्द्र + उदय= चन्द्रोदयअ + ऊ= ओसमुद्र + ऊर्मि= समुद्रोर्मिआ + उ= ओमहा + उत्स्व= महोत्स्वआ + ऊ= ओगंगा + ऊर्मि= गंगोर्मिअ + ऋ= अर्देव + ऋषि= देवर्षिआ + ऋ= अर्महा + ऋषि= महर्षि

(iii) वृद्धि संधि- अ, आ का मेल ए, ऐ के साथ होने से 'ऐ' तथा ओ, औ के साथ होने से 'औ' में परिवर्तन को वृद्धि संधि कहते हैं। 

जैसे-

अ + ए =ऐएक + एक =एकैकअ + ऐ =ऐनव + ऐश्र्वर्य =नवैश्र्वर्यआ + ए=ऐमहा + ऐश्र्वर्य=महैश्र्वर्य

सदा + एव =सदैवअ + ओ =औपरम + ओजस्वी =परमौजस्वी

वन + ओषधि =वनौषधिअ + औ =औपरम + औषध =परमौषधआ + ओ =औमहा + ओजस्वी =महौजस्वीआ + औ =औमहा + औषध =महौषध

(iv) यण संधि- इ, ई, उ, ऊ या ऋ का मेल यदि असमान स्वर से होता है तो इ, ई को 'य'; उ, ऊ को 'व' और ऋ को 'र' हो जाता है। इसे यण संधि कहते हैं। 

जैसे-

(क) इ + अ= ययदि + अपि= यद्यपिइ + आ= याअति + आवश्यक= अत्यावश्यकइ + उ= युअति + उत्तम= अत्युत्तमइ + ऊ = यूअति + उष्म= अत्यूष्म(ख) उ + अ= वअनु + आय= अन्वयउ + आ= वामधु + आलय= मध्वालयउ + ओ = वोगुरु + ओदन= गुवौंदनउ + औ= वौगुरु + औदार्य= गुवौंदार्यउ + इ= विअनु + इत= अन्वितउ + ए= वेअनु + एषण= अन्वेषण(ग) ऋ + आ= रापितृ + आदेश= पित्रादेश

(v) अयादि स्वर संधि- ए, ऐ तथा ओ, औ का मेल किसी अन्य स्वर के साथ होने से क्रमशः अय्, आय् तथा अव्, आव् होने को अयादि संधि कहते हैं। 

जैसे-

ए + अ= यने + अन= नयनऐ + अ= यगै + अक= गायकओ + अ= वभो + अन= भवनऔ + उ= वुभौ + उक= भावुक

(2)व्यंजन संधि ( Combination of Consonants ) :- व्यंजन से स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पत्र विकार को व्यंजन संधि कहते है।

दूसरे शब्दों में- एक व्यंजन के दूसरे व्यंजन या स्वर से मेल को व्यंजन-संधि कहते हैं।

कुछ नियम इस प्रकार हैं-

(1) यदि 'म्' के बाद कोई व्यंजन वर्ण आये तो 'म्' का अनुस्वार हो जाता है या वह बादवाले वर्ग के पंचम वर्ण में भी बदल सकता है।

जैसे- अहम् + कार =अहंकार

पम् + चम =पंचम

सम् + गम =संगम

(2) यदि 'त्-द्' के बाद 'ल' रहे तो 'त्-द्' 'ल्' में बदल जाते है और 'न्' के बाद 'ल' रहे तो 'न्' का अनुनासिक के बाद 'ल्' हो जाता है। 

जैसे- उत् + लास =उल्लास

महान् + लाभ =महांल्लाभ

(3) किसी वर्ग के पहले वर्ण ('क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प') का मेल किसी स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे वर्ण या र ल व में से किसी वर्ण से हो तो वर्ण का पहला वर्ण स्वयं ही तीसरे वर्ण में परिवर्तित हो जाता है। यथा-

दिक् + गज =दिग्गज (वर्ग के तीसरे वर्ण से संधि) 

षट् + आनन =षडानन (किसी स्वर से संधि)

षट् + रिपु =षड्रिपु (र से संधि)

अन्य उदाहरण 

जगत् + ईश =जगतदीश

तत् + अनुसार =तदनुसार 

वाक् + दान =वाग्दान 

दिक् + दर्शन =दिग्दर्शन 

वाक् + जाल =वगजाल 

अप् + इन्धन =अबिन्धन 

तत् + रूप =तद्रूप

(4) यदि 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प', के बाद 'न' या 'म' आये, तो क्, च्, ट्, त्, प, अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं। जैसे-

वाक्+मय =वाड्मय

अप् +मय =अम्मय 

षट्+मार्ग =षणमार्ग 

जगत् +नाथ=जगत्राथ 

उत् +नति =उत्रति 

षट् +मास =षण्मास

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