sandrab sahit bhavarth dijiye..
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नमस्ते मित्र !!
मोकों कहाँ ढ़ूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतहि मिलियो, पल भर की तालास में।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वांसो की स्वांस में।
लोग भगवान की तलाश में मंदिर, मस्जिद, मजार और तीर्थस्थानों पर बेकार भटकते हैं। पूजा पाठ या तंत्र मंत्र सिर्फ आडम्बर हैं। इनसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। भगवान तो हर व्यक्ति की हर सांस में बसते हैं। जरूरत है उन्हें सही ढ़ंग से खोजने की। जो सही तरीके से ध्यान लगाकर ईश्वर को खोजता है उसे वे तुरंत मिल जाते हैं।
धन्यवाद !!
☺☺☺
मोकों कहाँ ढ़ूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतहि मिलियो, पल भर की तालास में।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वांसो की स्वांस में।
लोग भगवान की तलाश में मंदिर, मस्जिद, मजार और तीर्थस्थानों पर बेकार भटकते हैं। पूजा पाठ या तंत्र मंत्र सिर्फ आडम्बर हैं। इनसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। भगवान तो हर व्यक्ति की हर सांस में बसते हैं। जरूरत है उन्हें सही ढ़ंग से खोजने की। जो सही तरीके से ध्यान लगाकर ईश्वर को खोजता है उसे वे तुरंत मिल जाते हैं।
धन्यवाद !!
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