Chemistry, asked by kalpanagupta9121, 8 months ago

Sanksharad kise kahate hai

Answers

Answered by joelpereira
0

Answer:

Explanation:संक्षारण

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

Jump to navigationJump to search

मास्को के सुखोव टॉवर में दृष्टिगत संक्षारण

रेल कीपटरी का संक्षारण (मोरचा लग गया है।)

मोरचा लगा नट और बोल्ट

धातुओं का संक्षारण (Corrosion of metals) रासायनिक क्रिया है, जिसके फलस्वरूप धातुओं का क्षय एवं ह्रास होता है। धातुओं की क्षरणक्रिया, (Erosion) जिनमें यांत्रिक कारकों के फलस्वरूप धातुओं का ह्रास होता है, इस क्रिया से भिन्न होती है। धातुओं में संक्षारण वस्तुत: रासायनिक क्रिया, अथवा वैद्युत्रासायनिक क्रिया, के रूप में होता है। मूल आधार के अनुसार उपर्युक्त दोनों प्रकार की संक्षारण क्रियाएँ मूल क्रिया की विभिन्न अवस्थाएँ हैं।

धातुओं की संक्षारण क्रियाप्रणाली की मुक्त ऊर्जा में विशिष्ट एवं आवश्यक रूप में न्यूनता उत्पन्न होती है। प्रत्यक्ष रासायनिक क्रिया द्वारा धातुओं के संक्षारण में गैस, अथवा आर्द्रतायुक्त वातावरण, का संसर्ग संक्षारण के लिए उपयुक्त परिस्थितयाँ उत्पन्न करता है। संक्षारण की विद्युत्रासायनिक क्रिया में, धातुओं के द्रव में निमज्जित होने से, विद्युत्धारा उत्पन्न होने की उपयुक्त परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इस प्रकार संक्षारण क्रिया में धातुओं का विद्युत्रासायनिक ह्रास होता है। उनमें तथा द्रवों में निमज्जित होने से धातुओं की संक्षारण केवल उपर्युक्त परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती, अन्य कारकों का भी विशेष एवं महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

सामान्यत: धातुओं की संक्षारण क्रिया में निर्मित होनेवाला अंतिम उत्पाद ऐसा यौगिक होता है जो प्रकृति में खनिज पदार्थ के रूप में पाया जाता है। उदाहरणार्थ, ताँबे के पट्ट को बहुत वर्षों तक आंतरस्थलीय वातावरण में, खुली अवस्था में रखने से पट्ट के ऊपरी तल पर क्षारक सल्फेट की एक परत जर्म जाती है। ताँबे का यह क्षारक सल्फेट प्रकृति में पाए जानेवाले खनिज ब्रोकैटाइट जैसा होता है। इसी प्रकार लोहे अथवा इस्पात के पट्ट को लवणीय जल में पूर्णत: निमज्जित रखने पर वर्षा में उसके तल पर जलयोजित लोह (फेरिक) ऑक्साइड की कठोर परत जम जाती है। जलयोजित फेरिक ऑक्साइड प्रकृति में पाए जानेवाले खनिज गोथइट जैसा होता है। इस प्रकार धातुओं की संक्षारण क्रिया धातुओं के मध्यस्थायी धात्विक अवस्था में स्थायी ऑक्सीकृत अवस्था में प्रत्यावर्तन की क्रिया है। जो धातुएँ प्रकृति में अपने शुद्ध रूप में पाई जाती हैं, जैसे स्वर्ण, उनमें सामान्यत: प्रकृति में उपस्थित कारकों द्वारा संक्षारण क्रिया नहीं होती और इसके फलस्वरूप ही ऐसी धातुएँ असंयुक्त अवस्था में पाई जाती हैं।

अनुक्रम

1 प्रभावित करने वाले कारक

2 निवारण

3 इन्हें भी देखें

4 बाहरी कड़ियाँ

प्रभावित करने वाले कारक

संरचनात्मक आधार पर संक्षारण क्रिया निम्नांकित विभिन्न स्वरूपों में धातुओं पर प्रभाव उत्पन्न करती है :

1. संक्षारण क्रिया में धातु से केवल बाहरी तल में परिवर्तन होता है। इसके फलस्वरूप धातु के बाह्य तल पर संक्षारण उत्पाद का एकत्रीकरण होता है, अथवा ऐसे उत्पाद का विलयन द्वारा धातु के तल से बहिष्कार होता जाता है। इस प्रकार के संक्षारण से धातु का अपरिवर्तित अवशेष उस समय तक विद्यमान रहता है जब तक धातु का संक्षारण शत प्रति शत न हो जाए।

2. क्रिया के फलस्वरूप धातुओं के तल पर होनेवाले परिवर्तन के साथ ही धातु में अंतर्क्रिस्टलीय वेधन भी होता है। इस प्रकार की संक्षारण क्रिया को क्रिस्टलीय संक्षारण कहा जाता है और इसके फलस्वरूप अवशिष्ट धातु के भीतरी भाग में भंगुरता उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार के संक्षारण से ऊपर से ठीक दिखाई पड़नेवली संक्षारित धातु के यांत्रिक बल में न्यूनता उत्पन्न हो जाती है।

3. धातु के केवल बाहरी तल पर ही संक्षारण क्रिया नहीं होती, वरन् वह धातु की समस्त संहति में व्याप्त हो जाती है। इस प्रकार संक्षारण को पश्चकायिक (meta-somatic) संक्षारण, अथवा परिवर्तन कहा है।

4. संक्षारण की तीव्र एवं अंतिम स्थिति में धातुसंरचना में आमूल परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है, परंतु बाह्य अवस्था एवं आकार में कोई परिवर्तन परिलक्षित नहीं होता। इस प्रकार के संक्षारण से ढलवे लोहे का ग्रेफाइटीकरण (graphitisation) हो जाता है। संक्षारण की क्रिया से पीतल में से यशद का निर्यशदीकरण (Dezincification) इसी प्रकार की संक्षारण क्रिया का एक अन्य उदाहरण है।

निवारण

धातुओं के संक्षारण निवारण में सैद्धांतिक रूप में उन सभी उपायों एवं कारकों को छोड़ देना पड़ता है जो स्थायी अवस्था के प्रत्यावर्तन को प्रोत्साहित करते हैं। इस प्रकार के कारक विभिन्न धातुओं के लिए भिन्न भिन्न होते हैं, परंतु सामान्य रूप में ऑक्सीजन तथा ऑक्सीजन मिश्रित विलयन एवं जल में विलेय पदार्थ स्थायी अवस्था के प्रत्यावर्तन को प्रोत्साहित करते हैं। संक्षारण के निवारण में उपर्युक्त कारकों का पूर्ण बहिष्कार प्राय: असंभव होता है। अत: इनकी उपस्थिति में स्वयंस्थिरक (stiffening) क्रियाओं का सहारा लिया जाता है। धातुसंक्षारण की विशेष परिस्थितियों में संक्षारण की गति पर अधिकतम अवरोध उत्पन्न करनेवाले कारक को संक्षारण का नियंत्रक कारक कहा जाता है। औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्राय: सभी धातुओं के बाह्य तल पर वातावरण में खुले रहने से दिखाई देनेवाली, अथवा न दिखाई देनेवाली, सूक्ष्म परत जम जाती है, जो अनुवर्ती संक्षारण प्रक्रियायों को प्रभावित करती है। सामान्यत: यह परत खुली धातु के ऑक्साइड से निर्मित होती है। इसके गुण मूल धातु के गुणों से भिन्न होते हैं तथा खुले रहने की परिस्थितियों से भी व्यवहारभिन्नता उत्पन्न होती है। अधिकांश परिस्थितियों में ऑक्साइड की यह परत मूलधातु के संक्षारण का निवारण करती है। इस प्रकार की मोटी परत जब प्रसारण एवं संकुचन के कारण कहीं कहीं से टूट जाती है, तब इन स्थानों पर विद्युत्-रासायनिक-संक्षारण प्रारंभ हो जाता है। धातुओं के संक्षारण को निम्नांकित छह भागों में विभक्त किया जाता है :

:

Answered by ItZzMissKhushi
0

Answer:

संक्षारण की परिभाषा : जब धातु पानी (नमी) और वायुमंडल (ऑक्सीजन) के संपर्क में आती है तो धातुएँ धीरे धीरे अवांछित पदार्थों जैसे ऑक्साइड , हाइड्रोक्साइड कार्बोनेट आदि मे परिवर्तित होने लगती है , धातुओं का अवांछित यौगिकों में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को ही संक्षारण कहते है।

Explanation:

Similar questions