Sanskar aur bhavana story in hindi
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संस्कार और भावना एकांकी में माँ अपनी बंगाली बहु को स्वीकार नहीं करती है और उसके कारण अपने बेटे के साथ नहीं रहती है। पर जब माँ को अपने बेटे की जानलेवा बीमारी और अपनी बंगाली बहु द्वारा की गई सेवा की सूचना मिलती है उसका पुत्र प्रेम प्रबल हो जाता है और वह अपने बहु बेटे को अपनाने का निश्चय करती है।
इस एकांकी में विष्णु प्रभाकर जी ने मानवीय भावनाओं के बीच के द्वंद्व को बहुत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करा है। वे इस एकांकी के माध्यम से यह सन्देश देते हैं कि लोग पारंपरिक रुढ़िवादी संस्कारों की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझते हैं। इसके कारण वे अपने निकट संबंधियों से भी रिश्ता तोड़ देते हैं। पर इसका दुःख हमेशा हमें कष्ट देता है।
हम देखते हैं कि दुःख के समय जब कोई सहायता करता है तब ये रुढ़िग्रस्त प्राचीन संस्कार दुर्बल हो जाते हैं। मानवीय भावना प्रबल हो जाती है।