Sanskrit bhasha ka adhyan samaaj ke liye kaise upyogi hai
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संस्कृत शब्द ‘सम्’ उपसर्गपूर्वक ‘कृ’ धातु से ‘क्त’ प्रत्यय जोड़ने पर बना है जिसका अर्थ है - संस्कार की हुई, परिमार्जित, शुद्ध अथवा परिस्कृत। संस्कृत शब्द से आर्यो की साहित्यिक भाषा का बोध होता है। भाषा शब्द संस्कृत की ‘भाष्’ धातु से निष्पन्न हुई है। भाष् धातु का अर्थ व्यक्त वाक् (व्यक्तायां वाचि) है। महर्षि पत×जलि के अनुसार - ‘‘व्यक्ता वाचि वर्णा येषा त इमे व्यक्त वाचः ‘‘ अर्थात्- भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली भांति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार स्वयं स्पष्ट रूप से समझ सकता है।
भाषा मानव की प्रगति में विशेष रूप से सहायता करती है। हमारे पूर्वपुरूषों के सारे अनुभव हमें भाषा के माध्यम से ही प्राप्त हुए हैं। हमारे सभी शास्त्र और उनसे होने वाला सम्पूर्ण लाभ, भाषा का ही परिणाम है। महाकवि दण्डी के शब्दों में -
इदमन्धन्तमः कृत्स्नं जायेत भुवनत्रयम््
यदि शब्दाह्वयं ज्योतिरासंसारं न दीप्यते ।।
अर्थात् यह सम्पूर्ण भुवन अन्धकारपूर्ण हो जाता यदि संसार में शब्द - स्वरूप ज्योति अर्थात् भाषा का प्रकाश न होता। निश्चित रूपेण, विभिन्न अर्थों में संकेतित शब्द-समूह ही भाषा है जिसके द्वारा हम अपने मनोभाव दूसरो के प्रति सरलता से प्रकट करते हैं।
शब्द और अर्थ के सामंजस्य का प्रतीक है - साहित्य। सहितस्य भावः साहित्यम्। वस्तुतः साहित्य ही किसी देश की संस्कृति रूपी कनक को कसने की कसौटी है। यह समाज का दर्पण है। इसमें कोई दो मत नहीें कि संस्कृत भाषा ही हमारी संस्कृति, सभ्यता का मूल स्रोत है जो भारत की ही नहीं अपितु विश्व की प्राचीनतम भाषा है। इसका साहित्य विश्व का प्राचीनतम साहित्य है क्योंकि हम सभी जानते एवं मानते हैं कि ऋ़ग्वेद संसार का आदिम ग्रन्थ है।
संस्कृत साहित्य अत्यन्त व्यापक है। इसमें निहित शैक्षणिक तत्त्व प्राचीन काल से आज तक अविरल गति से प्रवाहित हो रहे हैं। इसमें आचारशास्त्र, व्याकरणशास़्त्र, राजनीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र, कामशास्त्र, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, नाट्यशास्त्र, आलोचना शास्त्र, गद्य-पद्य आदि का अक्षय भण्डार है।