Sanskrit essay on swami Dayanand
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सन्ति बहवो भारतस्य वरपुत्राः येषु अविस्मरणीयः स्वामी विवेकानन्दः। सः विश्वधर्मसम्मेलने भारतीय-संस्कृतेः उपादेयतां श्रेष्ठतां च प्रादर्शयत्। बङ्गप्रान्तस्य कोलकातानगरे त्रिषष्ट्यधिकशततमे(१८६३) वर्षे जनवरी मासस्य द्वादशे दिने एतस्य जन्म अभवत्। तस्य पिता श्री विश्वनाथदत्तमहोदय:। पूर्वं तस्य नाम नरेन्द्रनाथदत्तः इति आसीत्। एषः उत्साही, हास्यप्रियः, करुणापरः च आसीत्। नरेन्द्रः बाल्ये कपीन्, मयूरान्, कपोतान् च पालयति स्म। एषः पितुः हयान् अपि रक्षति स्म। अध्ययनपटुरयं नरेन्द्रः शास्त्रीयसङ्गीतस्य अभ्यासं करोति स्म। प्रतिदिनं व्यायामं करोति स्म। ध्यानसिद्धः अयं भ्रूमध्ये ज्योतिरेकं पश्यति स्म। ईश्वर-जिज्ञासुः अयं सर्वान् पृच्छति स्म यत् किं भवान् ईश्वरं दृष्टवान्? इति। ईश्वरं ज्ञातुं पाश्चात्यदर्शनस्य भारतीयदर्शनस्य च गभीरम् अध्ययनं कुर्वन् अयं नरेन्द्रः विश्वविद्यालयस्य स्नातकपदवीम् अधिगतवान्। अस्मिन्नेव समये दैवयोगात् दक्षिणेश्वरस्थे कालीमन्दिरे परमहंसस्य रामकृष्णदेवस्य दर्शनं तेन प्राप्तम्। रामकृष्णमुद्दिश्य नरेन्द्रः पृष्टवान् ‘किं भवान् ईश्वरं दृष्टवान् ?’इति। ‘आम्। त्वामिव ईश्वरमपि पश्यामि’ इति श्रीरामकृष्णदेवः स्मयमानः अवदत्। एष एव महापुरुषः नरेन्द्रस्य अध्यात्म-गुरुः अभवत्। सन्यासदीक्षानन्तरं नरेन्द्रस्य नाम विवेकानन्दः इति अभवत्। अयं च नरेन्द्रः भारतभ्रमणं योगसाधनां च कृत्वा त्रिनवत्यधिकाष्टादशत(१८९३)तमे वर्षे अमेरिकादेशस्य शिकागोनगरे विश्वधर्मसभायां भारतस्य गौरवं प्रतिष्ठापितवान् । तत्र सभास्थले विविध धर्मग्रन्थाः एकस्य उपरि एकः इति क्रमेण स्थापिताः आसन् । संयोगवशात् श्रीमद्भगवद्गीता सर्वेषां पुस्तकानाम् अधः आसीत् । एकः अमेरिकावासी उपहासपूर्|
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स्वामी दयानन्द सरस्वती पर निबंध – Swami Dayanand Essay in Hindi
2016-02-12Ritu
स्वामी दयानन्द सरस्वती एक महान सुधारक थे। जिस समय पूरा भारत वर्ष अशिक्षा, अंधविश्वास और रूढ़िवादिता के अंधकर में डूबा हुआ था। उसी समय ज्योतिपुंज के रूप में दयानन्द सरस्वती का जन्म हुआ। स्वामी दयानन्द ने हिन्दु धर्म को एक नया मोड़ दिया। उनके सद् उपदेशों से हिन्दू समाज में नयी चेतना का संचार हुआ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 ई. को गुजरात में टंकारा नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता श्री अम्बा शंकर शिव के उपासक थे। अतः उन्होंने अपने पुत्र का नाम ‘मूल शंकर’ रखा। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा संस्कृत भाषा में घर पर ही हुई। आपने बारह वर्ष की उम्र तक संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया।
एक बार शिवरात्रि के पर्व पर इन्होंने पिता के कहने से व्रत रखा। रात्रि में वह अपने पिता के साथ मंदिर गये। सभी भक्तगण कुछ देर के बाद ऊँघने लगे। बालक मूलशंकर ने देखा कि एक चूहा शिवलिंग पर चढ़ कर वहाँ रखी मिठाई खा रहा है। उनके मन में विचार आया कि जो शिवलिंग अपनी मिठाई की रक्षा नहीं कर सकता वह भक्तों की रक्षा कैसे करेगा। इस घटना ने उनके जीवन को एक नयी दिशा दी। बालक मूल शंकर सच्चे शिव की खोज में चल दिया।
2016-02-12Ritu
स्वामी दयानन्द सरस्वती एक महान सुधारक थे। जिस समय पूरा भारत वर्ष अशिक्षा, अंधविश्वास और रूढ़िवादिता के अंधकर में डूबा हुआ था। उसी समय ज्योतिपुंज के रूप में दयानन्द सरस्वती का जन्म हुआ। स्वामी दयानन्द ने हिन्दु धर्म को एक नया मोड़ दिया। उनके सद् उपदेशों से हिन्दू समाज में नयी चेतना का संचार हुआ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 ई. को गुजरात में टंकारा नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता श्री अम्बा शंकर शिव के उपासक थे। अतः उन्होंने अपने पुत्र का नाम ‘मूल शंकर’ रखा। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा संस्कृत भाषा में घर पर ही हुई। आपने बारह वर्ष की उम्र तक संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया।
एक बार शिवरात्रि के पर्व पर इन्होंने पिता के कहने से व्रत रखा। रात्रि में वह अपने पिता के साथ मंदिर गये। सभी भक्तगण कुछ देर के बाद ऊँघने लगे। बालक मूलशंकर ने देखा कि एक चूहा शिवलिंग पर चढ़ कर वहाँ रखी मिठाई खा रहा है। उनके मन में विचार आया कि जो शिवलिंग अपनी मिठाई की रक्षा नहीं कर सकता वह भक्तों की रक्षा कैसे करेगा। इस घटना ने उनके जीवन को एक नयी दिशा दी। बालक मूल शंकर सच्चे शिव की खोज में चल दिया।
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