Sanskrit shlokas on paropkar
Answers
Here are the following shlokas:---
1. ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधभाई।’
2....“वृक्ष कभू नहीं फल भखे, नदी न संचय नीर,
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर”
3....धन रहै न जोबन रहे, रहै न गांव न ठांव।
कबीर जग में जस रहे, करिदे किसी का काम।
4....स्वारथ सूका लाकड़ा, छांह बिहना सूल।
पीपल परमारथ भजो, सुख सागर को मूल।।
5.....परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥
परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदीयाँ परोपकार के लिए ही बहती हैं और गाय परोपकार के लिए दूध देती हैं, (अर्थात्) यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है ।
6....आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः ।
परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति ॥
इस जीवलोक में स्वयं के लिए कौन नहीं जीता ? परंतु, जो परोपकार के लिए जीता है, वही सच्चा जीना है ।
7....राहिणि नलिनीलक्ष्मी दिवसो निदधाति दिनकराप्रभवाम् ।
अनपेक्षितगुणदोषः परोपकारः सतां व्यसनम् ॥
दिन
में जिसे अनुराग है वैसे कमल को, दिन सूर्य से पैदा हुई शोभा देता है ।
अर्थात् परोपकार करना तो सज्जनों का व्यसन-आदत है, उन्हें गुण-दोष की परवा
नहीं होती ।
8....परोपकृति कैवल्ये तोलयित्वा जनार्दनः ।
गुर्वीमुपकृतिं मत्वा ह्यवतारान् दशाग्रहीत् ॥
विष्णु
भगवान ने परोपकार और मोक्षपद दोनों को तोलकर देखे, तो उपकार का पल्लु ज़ादा
झुका हुआ दिखा; इसलिए परोपकारार्थ उन्हों ने दस अवतार लिये ।
9....भवन्ति नम्रस्तरवः फलोद्रमैः
नवाम्बुभिर्दूरविलम्बिनो घनाः ।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः
स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् ॥
वृक्षों पर फल आने से वे झुकते हैं (नम्र बनते हैं); पानी में भरे बादल आकाश में नीचे आते हैं; अच्छे लोग समृद्धि से गर्विष्ठ नहीं बनते, परोपकारियों का यह स्वभाव हि होता है ।
10....श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रन्थकोटिभिः ।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
जो करोडो ग्रंथों में कहा है, वह मैं आधे श्लोक में कहता हूँ; परोपकार पुण्यकारक है, और दूसरे को पीडा देना पापकारक है ।
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