सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
पुर तें निकसी रघुबीर-वधू, धरि धीर दए मग में डग द्वैं।
झलकीं भरि भाल कनी जल की, पट सूखि गए मधुराधर वै।
फिर बुझति हैं, चलनो अब केतिक, पर्नकुटी करिहौं कित ह्वै?
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै।।
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सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
पुर तें निकसी रघुबीर-वधू, धरि धीर दए मग में डग द्वैं।
झलकीं भरि भाल कनी जल की, पट सूखि गए मधुराधर वै।
फिर बुझति हैं, चलनो अब केतिक, पर्नकुटी करिहौं कित ह्वै?
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै।।
Answer:
सप्रसंग : यह पंक्तियाँ हमारी पद्य पुस्तक भाग – 1 में संकलित सवैया ‘ वन के मार्ग ‘ से ली गई है | इसके रचनाकार तुलसीदास जी है | इन पंक्तियों में वन मार्ग में सीता जी की दशा का वर्णन किया गया है |
व्याख्या : राम -सीता और लक्ष्मण 14 वर्ष का वनवास काटने के लिए अयोध्या नगरी से वन में गए थे | सीता बड़ा धैर्य धारण कर मार्ग में पैर रक्ग रही है | सीता जी के माथे में पसीने की बुँदे चमक रही है | प्यास के कारण सीता के होंठ सुख गए है | सीता राम जी से पूछती है की अब कितना चलना है ? हमारी कुटिया कितनी दूर है ? यह सब सुन कर राम की आँखों में आँसू आ गए |
भाव यह है कि सीता जी कोमल एक राज कुमारी थी , और उन्हें इतना कष्ट कभी नहीं देखा लेकिन उन्हें आज थ करना पड़ रहा है | अपने पति राम जी के साथ निभाने के लिए 14 वर्ष के वनवास के लिए चल पड़ी| सीता इतना कष्ट नहीं श पा रही थी , यह सब राम जी देखा नहीं जा रहा था और वो दुखी हो रहे थे |