सप्रसंगम् अनुवादं कुरुत –
(i) मातः अपराधं मे क्षमस्व। नाहं भवतीं क्लेशयितुं समागतोऽस्मि। अहं तु गुरोः उदरपीडां शमनाय दुग्धमानेतुमागतोऽस्मि। मातः! प्रयच्छ दुग्धम्। येन मे गुरोः उदरपीडा शान्ता भवेत्।
प्रसङ्गः- यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के शिष्य-परीक्षाः पाठ से लिया गया है। यह पाठ वीरशिरोमणि महाराज शिवाजी की बाल्यकाल की घटना पर आधारित है। समर्थ गुरु रामदास उदरपीड़ा का नाटक करके शिष्यों एवं भक्तों की परीक्षा लेते हैं। इन पंक्तियों में शिवाजी बाघिनी से कहते हैं
हिन्दी अनुवादः- माँ अपराध को क्षमा करें। मैं आपको कष्ट देने के लिए नहीं आया हूँ। मैं तो गुरु की उदर पीड़ा शान्त करने के लिए दूध लेने के लिए आया हूँ। माँ दूध दे दो। जिससे मेरे गुरुजी की उदर पीड़ा शान्त हो जाये।
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