Hindi, asked by khushimaheshwari806, 5 months ago

सप्ताहिक बाजार निबंध ​

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एक एकला व्यक्ति अपनी समस्त आवश्यकताएं पूरी नही कर सकता है. उसे बाजार (अंग्रेजी में Market/ bazar) का सहारा लेना पड़ता है. सभ्यता के आरम्भ से ही मनुष्य एक दूसरे पर निर्भर रहा है. हालांकि समय के बदलाव के साथ बाजार के स्वरूप का विस्तार होता रहा है. प्रारम्भ में मनुष्य की आवश्यकताएं बहुत कम थी, इस कारण बाजार भी छोटे हुआ करते प्राचीन समय में व्यक्ति बाजार में उनकी आवश्यकताओं की वस्तुएं देता था तथा अपनी आवश्यकता की वस्तुएं प्राप्त करता था. जैसे किसान अपने खेत में पैदा अनाज के बदले अपनी आवश्यकता का सामान प्राप्त करता था. वह अनाज के बदले में जुलाहें से कपड़ा, लुहार से औजार तथा कुम्हार से बर्तन प्राप्त करता ठस. इस प्रकार वस्तु के बदले वस्तु देकर एक दूसरे की आवश्यकताएं पूरी की जाती थी. बाजार की यह प्रणाली वस्तु विनिमय (commodity Exchange) कहलाती थी. एक ही स्थान पर रहने वाले लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति इसी प्रकार से करते थे.

समय गुजरने के साथ साथ मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ने लगी और उन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नयी नई वस्तुओं का निर्माण होने लगा. वस्तुओं के निर्माण की नई नई विधियाँ खोजी गई, और जनसंख्या वृद्धि के साथ साथ बड़ी मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन किया जाने लगा. कृषि एवं परम्परागत वस्तुओं के उत्पादन के साथ साथ लघु व कुटीर उद्योगों में आवश्यकता की अनेक वस्तुओं का उत्पादन होने लगा. अब वस्तु के बदले वस्तु देने की प्रणाली के द्वारा लोगों को आवश्यकता पूर्ती में कठिनाई होने लगी. धीरे धीरे लेन देन की नई बाजार प्रणाली (Market system) का जन्म हुआ.

मुद्रा के विकास के साथ ही मुद्रा के बदले वस्तुओं के लेने देने की सुविधापूर्ण प्रणाली विकसित हुई. जब मूल्य के रूप में वस्तु न दी जाकर मुद्रा दी जाती है तो इसे मुद्रा विनिमय (currency exchange) कहते है.

बाजार का आधुनिक स्वरूप (what is marketing concept)

आधुनिक युग मशीनों का युग है. बड़े बड़े कारखानों में लगे मजदूर हमारी आवश्यकता की हजार तरह की वस्तुए तैयार रखते है. आज व्यक्ति केवल अपने, गाँव, शहर या देश की ही नही बल्कि विदेशों में बनी वस्तुओं का उपयोग भी करने लगा है. यह वस्तु विनिमय प्रणाली में संभव नही था, परन्तु मुद्रा विनिमय प्रणाली ने इसे संभव बना दिया है.

हम बाजार जाते है और बाजार से अपनी आवश्यकता की बहुत सी चीजों को खरीदते है. जैसे सब्जियां, साबुन, दंत मंजन, मसाले, ब्रेड, बिस्किट, चावल, दाल, कपड़े, किताबों, कोपियाँ आदि. हम जो कुछ खरीदते है, इन सभी वस्तुओं की सूची बनाई जाए तो वह बहुत लम्बी है. बाजार भी कई प्रकार (Many types of market) के होते है. जहाँ हम अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को खरीदने के लिए जाते है. जैसे हमारे पडोस की गुमटी मोहल्ले की दूकान, साप्ताहिक हाट बाजार, बड़े बड़े शोपिंग काम्प्लेक्स और शॉपिंग मॉल आदि. आइये अब बाजार के इन विभिन्न स्वरूपों के बारे में जानते है.

बाजार के विभिन्न प्रकार व उनके कार्य (different types & classification of market in hindi)

मोहल्ले की दुकान (Neighborhood store)- बहुत सी दुकाने हमारे मोहल्ले में होती है, जो हमे कई तरह की सेवाएं और सामान उपलब्ध करवाती है. हम पास की डेयरी से दूध, किराना व्यापारी से तेल मसाले व अन्य खाद्य पदार्थ तथा स्टेंनरी के व्यापारी से कागज पैन या फिर दवाइयों की दूकान से दवाई खरीदते है. नाई की दूकान पर अपने बाल कटवाते है और ड्राई क्लीनर से वस्त्र धुलवाते व इस्त्री करवाते है. नाई व ड्राई क्लीनर हमे अपनी सेवाएं प्रदान करते है. इस तरह की दुकाने सामान्यतः पक्की व स्थायी होती है. जबकि सड़क किनारे फुटपाथ पर सब्जियों के कुछ छोटे दुकानदार, फल विक्रेता और कुछ गाड़ी मैकेनिक आदि भी दिखाई देते है. ये मोहल्ले की दुकाने कई अर्थों में उपयोगी होती है. वे हमारे घरों के करीब होती है. अतः हम सप्ताह के किसी दिन और किसी भी समय इन दुकानों पर जा सकते है.

साप्ताहिक बाजार (weekly shop)– साप्ताहिक बाजार का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि बाजार सप्ताह के लिए निश्चित दिन लगता है. इस तरह के बाजार में रोज खुलने वाली पक्की दुकाने नही होती है. किसी निश्चित स्थान पर बहुत से व्यापारी एक निश्चित दिन खुले में ही दुकाने लगाते है और शाम को उन्हें समेट लेते है. अगले दिन वे अपनी दुकानों को किसी अन्य स्थान पर लगाते है. ऐसे बाजारों को हाट बाजार भी कहा जाता है. साप्ताहिक बाजारों में रोजमर्रा की जरूरतों की बहुत सी चीजे सस्ते दामों में मिल जाती है. ऐसा इसलिए कि इन बाजारों में एक ही तरह के सामानों की कई दुकाने होती है, जिससे उनमें आपस में प्रतियोगिता होती है, अतः खरीददारों को अवसर होता है. कि वे मोल तोल करके भाव कम करवा सके. साथ ही उन्हें अपनी दुकानों का किराया, बिजली का बिल, सरकारी शुल्क, कर्मचारी की तनख्वाह आदि का भी खर्च नही करना पड़ता है. लोग अक्सर इन बाजारों में जाना पसंद करते है. कर लेता था.

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