‘सपनों के – से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि उस समय कि पढाई का तरीका किस प्रकार बाल मनोविज्ञान के विरूद्ध था?
अथवा
‘टोपी और इफ्फ़न की दादी अलग-अलग मजहब और जाति के थे पर एक अटूट रिश्ते से बंधे थे|’ इस कथन के संदर्भ मे अपने विचार दीजिए
Answers
‘सपनों के से दिन’ पाठ में लेखक ने उस समय की पढाई के तरिकों के बारें में बताते हुए कहा है कि बचपन में सभी बच्चों के साथ उनकी भी पिटाई होती थी| नंगे पाँव, फटे मैले वस्त्र और बिखरे हुए बाल लेकर सभी खेलते थे| पढाई के तरिके भी आधुनिक न थे| छोटी सी गलती होने पर रूई की तरह धुनाई करना, मुर्गे बनाना और चमडी उधेड देने जैसे तरिके प्रयोग में लाएं जाते थे| बच्चों को कभी भी उनके मन के अनुसार पढने, खेलने की अनुमति नहीं होती थी| उन्हें प्यार से कभी नही पढाया, समझाया जाता था, जो कि बाल मनोविज्ञान के सिद्धांत के विरुद्ध था| ऐसी शिक्षा से छात्रों का चहुँमुखी विकास संभव न था| छात्र उसी काम को या पढाई को आनंदपूर्वक कर सकते हैं जिसमें उनके रूचि के अनुकूल वातावरण हो|
अथवा
‘टोपी और इफ्फन की दादी अलग अलग मजहब और जाति के थे पर एक अटुट रिश्ते से बंधे थे|’ इस कथन के स़ंदर्भ में लेखक का मत है कि टोपी को इफ्फन की दादी अच्छी लगती थी उसका कारण यह था कि उसकी अपनी दादी सदैव उसको डाँटती रहती ती, उसे बिल्कुल प्यार न करती थी| इफ्फन की दादी कहानियाँ सुनाती थी, उसे अपने पास बिठाती थी| उस से उसकी अम्मा के बारे में पूछती और उसे भी इफ्फन के जैसा दुलार करती थी| ऐसे टोपी को उन्हीं का स्वभाव अच्छा लगता, उनकी बोली बोलना, शब्दों का उनके तरीके से बोलना टोपी को अच्छा लगता था| भले ही टोपी हिंदू है और इफ्फन की दादी मुस्लिम है, परंतु उनके प्रेम व स्नेह का रिश्ता था| जिसे कोई जाति या मजहब बाँट नहीं सकता था| वे एक ऐसे अटूट रिश्ते में बंध गए कि इस स्नेहमयी भाव में उम्र, जाति और धर्म आडे नहीं आ सकता|
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