Sara sansar swrth ka akhada hi to h
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I cannot understand your question please ask your question properly phir kya karu
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स्वार्थ शब्द पर विचार करें तो स्व और अर्थ दो शब्दों से बना हुआ यह शब्द प्रतीत होता है। ‘स्व’ अपने को कहते हैं और अर्थ के अनेक अर्थ हो सकते हैं जिसमें धन, सम्पत्ति व अन्य प्रयोजन की सिद्धि भी मानी जा सकती है। स्वार्थ शब्द अपने आप में बुरा नहीं है परन्तु स्वार्थी मनुष्य अपने प्रयोजन की सिद्धि के लिए अनेक बार दूसरों के हितों को हानि पहुंचा कर अपना हित अनुचित साधनों से व अधर्म पूर्वक करता है, यह बुरा होता है। स्वार्थ के नाम पर बुरा कार्य करने वाला यदि ज्ञानी है तो वह अपनी बुद्धि से ज्ञान का दुरुपयोग करता है। यदि ज्ञानी भी धार्मिक हो तो वह धर्म को हानि पहुंचाता है। धर्म की हानि का अर्थ है कि वह नाना प्रकार के मिथ्या विश्वासों से युक्त ग्रन्थ लिख दें और उस पर उसके लेखक व रचयिता के रूप में किसी प्रतिष्ठि विद्वान या ऋषि का नाम लिख दे जिससे लोग उन ऋषियों वा विद्वानों पर अपनी श्रद्धा के कारण उन ग्रन्थों की मिथ्या व अन्धविश्वास युक्त बातों पर भी विश्वास कर लें। एक बार किसी ने कर लिया तो यह फिर धीरे धीरे परम्परा बन जाती है जिससे लोग सत्य व ज्ञान से दूर होकर मिथ्या विश्वासों में फंस जाते हैं।
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