Saral arht of Pratibha ka paeman medha ki uchae gharai
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भारत-जापान मैत्री की नींव आज मजबूत हो गई है। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे की इस भारत-यात्रा के दौरान यह स्पष्ट हो गया है कि दोनों देश आपसी मामलों में तो एक-दूसरे को काफी फायदा पहुंचा ही सकते हैं, इसके अलावा लगभग आधा दर्जन प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मामलों में उनकी एक-जैसी दृष्टि है। चीन, उ.कोरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, प्रशांत महासागर, आतंकवाद, अफ्रो-एशियाई महापथ, भारत-जापान-अमेरिका का त्रिकोणात्मक सहकार–इन सब मामलों में भारत और जापान का नजरिया लगभग एक-जैसा ही है। इन सब समानताओं के होते हुए भी पिछले 70 साल में भारत और जापान के संबंध घनिष्ट क्यों नहीं हुए ? कौटिल्य का यह सूत्र भारत-जापान संबंधों पर लागू क्यों नहीं हो पाया कि पड़ौसी का पड़ौसी हमारा मित्र होगा ? एक तो भारत का असंलग्न होना और जापान का अमेरिकी गुट में होना। दूसरा, भारत का परमाणु बम संपन्न होना और जापान का उसका विरोधी होना। तीसरा, भारत द्वारा अंग्रेजी भाषा की गुलामी करना। अब ये तीनों बाधाएं नहीं रहीं। अब भारत, अमेरिका और जापान मिलकर संयुक्त सैन्य अभ्यास कर रहे हैं। जापान अब हमें परमाणु तकनीक देने के लिए तत्पर है और अब भारत और जापान दोनों अंग्रेजी की बैसाखी तजकर हिंदी और जापानी को अपने व्यापार, कूटनीति और लेन-देन का माध्यम बनाने के लिए तैयार हो गए हैं। इस समय भारत-जापान व्यापार बहुत ही दयनीय है।