Saransh of sukhi dali
Answers
एकांकी में तीन दृश्यों की योजना की गयी है . समस्त कथा एक ही घर में और कुछ दिनों के अंतराल में समाप्त हो जाती है .छोटी बहु का सबकी हँसी के बीच सहसा प्रवेश और हँसी का रुक जाना नाटकीय है और मनोवैज्ञानिक रूप से उसके मन पर यह प्रभाव पड़ता है मानों वह हँसी उसी की उड़ाई जा रही थी . इस प्रकार के अन्य दृश्य भी एकांकी में आते है . एकांकी में एकांकीकार ने यह भी प्रकट किया है आधुनिक युग में अन्यी पीढ़ी भले ही संयुक्त परिवार को महत्व न दे पर संयुक्त परिवार में राखार बहुत सी समसएं बुजुर्गों के परामर्श तथा अन्य सदयों के सहयोग से सरलता से सुलझाई जा सकती है .
सूखी डाली एकांकी में पात्रों के स्वभाव के अनुकूल ही हलकी और गंभीर भाषा का प्रयोग हुआ है .मंझली बहु की जुबां कितनी तेज़ चलती है ,इंदु कितनी जल्दी बिगड़ जाती है और दादाजी कितनी गंभीरता से बात को सोचते हैं ,एकांकी में पात्रों के चरित्रों का विकास प्रदर्शित करने वाली ऐसी अनेक बातें हैं .एकांकी का अंत अत्यंत सुन्दर है .परिवार में भिन्न व्यक्तियों के स्वभाव वैषम्य के बीच भी एकता की एक ऐसी डोर रहती है जिसके सहारे परिवार का संचालन होता है .यही एकांकी का मूल उद्देश्य है और लेखक का विचार है कि ऐसी डोर का सिरा परिवार के किसी एक व्यक्ति के हाथों में ही होने पर परिवार की कुशलता है .प्रस्तुत एकांकी चरम सीमा तक समाप्त हो जाता है पर उसका अंत दुखांत नहीं है .इस एकांकी में प्रभावोत्पादकता प्रयाप्त मारट्र में हैं .इसे एक सफल एकांकी कहा जा सकता है .
एकांकी का नाम :- ' सुखी डाली ' ।
लेखक का नाम :- उपेंद्रनाथ अश्क ।
इस एकांकी का संक्षिप्त सारांश अपने शब्दों में
कुछ इस प्रकार है :-
सुखी डाली में संयुक्त परिवार की छवि को
दिखाया गया है । किस प्रकार संयुक्त परिवार
में परेशानियां होती है , किस प्रकार संयुक्त
परिवार आपस में रहते है उसी का उल्लेख
लेखक ने इस एकांकी में किया है । प्रस्तुत
एकांकी में ' बेला ' आधुनिक युग की प्रतिनिधि
है, जो इस संयुक्त परिवार की नई नवेली बहू
भी है । इस कारणवश उसकी अपने ससुराल
वालों से नहीं बनती है और वो ससुराल में कोई
भी कार्य नहीं करती । बेला हर वक्त मायका
का तारीफ करती रहती है । इस एकांकी में
दादा जी भी है , जो पूरे परिवार को बेला से
आदर भाव से पेश आने को कहते है । यहां
दादा जी का पूरा परिवार ' सुखी डाली ' के
भांति ही है । वहीं दूसरी ओर खुद दादा जी (
जो घर के मुखिया है ) उस सुखी डाली के जड़
है । दादाजी के समझाने पर ही बेला अब
ससुराल के कार्यों में हाथ बटाने लगती है ।
अतः लेखक यह संदेश देना चाहता है कि
समझदारी, प्रतीक्षा से हर कार्य पुर्नरूप से
संभव हो सकता है ।