सत्तावादी और लोकतांत्रत्रक राजिीनतक व्यवस्था के बीच के अंतर को समझाइए। तीसरी
दनुिया में उभरती सत्तावादी प्रवनृतयों के कारर्ों का उल्लेख कीजजये।
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नई दिल्ली। एक बार अपने घर या ऑफिस के कोने में रखे बदबूदार डस्टबिन को गौर से देखिए। डस्टबिन में कागज, पॉलिथिन, बीयर और कैन्स, दवाइयां, कांच के टुकड़े, ब्लेड, सड़ी हुई सब्जियां, मीट और हड्डियां और भी न जाने क्या-क्या मिल जाएगा।
देश का दिल कहे जाने वाली राजधानी दिल्ली से रोज 689.5 टन कचरा निकलता है। हमारे पास अभी तक इस कचरे के निपटारे का कोई उपाय नहीं है। इसलिए ये सारा कचरा शहर के आसपास ही पहाड़ बन कर खड़ा हो गया है।
आप दिल्ली में ही देख लीजिए यहां तीन बड़े कचरें के ऐसे पहाड़ हैं जिन्हें अगर आप मिला तो ये विश्व के सबसे छोटे शहर वैटिकन सिटी के भी दो गुना हैं। दरअसल शहर में इकठ्ठा होने वाला कूड़ा हमारी ही कारगुजारियों का नतीजा है।
अगर कोई कसर बाकी रह जाती है तो उसे पूरा कर देती है सरकार, जो कभी कभार ही इस पर ध्यान देती है भले ही देश में सफाई अभियान जोरों पर हो लेकिन असल हालात कुछ और ही कहानी बयां करते है।
चलिए जानते है कि कहां से निकलता है कूड़ा और कहां पहुंचता है