sathiyanistha based story in hindi
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राजा सत्यदेव धर्मनिष्ठ राजा थे। सदैव लोगों की भलाई में मग्न रहते थे। वे सत्य धर्म के कठोर उपासक थे। सत्य को ही वे सर्वस्व समझते थे। सत्य के लिए वे अपना सब कुछ छोड़ देने को भी तत्पर रहते थे। एक दिन प्रात, उठकर वे सूर्य भगवान को प्रणाम कर ही रहे थे कि उन्होंने एक सुंदरी को राजमहल से बाहर जाते देखा राजा के पूछने पर सुंदरी ने कहा- 'मैं लक्ष्मी हूं। बहुत समय तक तुम्हारे यहां रह ली, लेकिन अब मैं जा रही हूं। संदूरी के पीछे-पीछे एक व्यक्ति भी दरवाजे से बाहर निकला। राजा के पूछने पर उसने बताया मैं दान हूं, जब लक्ष्मी ही यहां से जा रही है, तो तुम दान कहां से दोगे, इसलिए मैं भी जा रहा हूं।'
कुछ क्षण बाद तीसरा व्यक्ति महल से बाहर निकला, पूछने पर उसने बताया मैं सदाचार हूं, जब लक्ष्मी और दान ही नहीं रहेंगे, तो मैं यहां रहकर क्या करूंगा। इसलिए मैं भी जा रहा हूं। चौथा व्यक्ति भी बाहर जाने लगा तो पूछने पर उसने बताया मैं यश हूं। जब लक्ष्मी दान और सदाचार सभी जा रहे हैं, तो मेरा यहां क्या काम। इसलिए मैं भी जा रहा हूं। अंत में पांचवां व्यक्ति बाहर जाने लगा तो राजा ने पूछा आप कौन हैं। वह बोला मैं सत्य हूं, जब ये चारों यहां नहीं रहेंगे तो मैं भी नही रह सकता, इसलिए मैं भी जा रहा हूं। इस बार राजा सत्यदेव पांचवे व्यक्ति के चरणों में हाथ जोड़कर गिर पड़े और विनय करने लगे भगवान, मैं तो आपका अनन्य भक्त हूं, दिन-रात आपकी आराधना करता हूं, लोग मुझे सत्यदेव कहते हैं, ये चारों जाएं तो जाएं, मुझे दुख नहीं, लेकिन मैं आपको जाने नहीं दूंगा। चाहे मेरे प्राण चले जाएं। राजा की सत्य के प्रति गहरी निष्ठा देखकर पांचवां व्यक्ति मुस्कराते हुए अंदर जाने लगा तो लक्ष्मी, दान,सदाचार और यश भी महल में लौट