सवास्थ ही संपधा है कहानी
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एक बार की बात है एक बहुत दयालु राजा था परंतु उसकी प्रजा उससे खुश नहीं थी क्योंकि राजा बहुत आलसी हो गया था । वह सोने और खाने के अलावा कुछ करता ही नहीं था।
राजा कई दिन,कई हफ्ते, महीने तक बिस्तरों पर ही पड़ा रहता था। सिर्फ खाता था और सोता था। राजा एक आलू की तरह हो गया। वह का वजन जब बहुत ज्यादा बढ गया तो उसके मंत्रियों ने उसके बारे में चिंता करनी शुरू कर दी। एक दिन राजा को महसूस हुआ कि वह अपने शरीर को हिला भी नही पा रहा था वह बहुत मोटा हो चुका था और उसके दुश्मन राजा उसका मजाक उड़ाया करते थे ।
राजा ने राज्य के विभिन्न हिस्सों से बहुत ही निपुण वैध को बुलाया और कहा कि जो भी उसे ठीक कर देगा वह उस वैध को उचित इनाम देगा। दुर्भाग्य से कोई भी राजा को ठीक नही कर सका। राजा ने अपना सुडौल शरीर वापस पाने के लिए बहुत सा धन खर्च किया । परंतु सब बेकार , कोई फायदा नही हुआ ।
एक दिन की बात है एक बुद्धिमान महात्मा ने उसके राज्य में भ्रमण किया। जब महात्मा ने राजा की खराब स्वास्थ्य के बारे में सुना तो तुरंत मंत्री को सूचित किया कि वह राजा को जल्दी ही ठीक कर सकता है। ये बात सुनकर मंत्री बहुत खुश हुआ और उसने राजा को तुरंत इसकी सूचना दी। मत्री ने कहा,” महाराज, यदि आप अपनी इस समस्या से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आप उस महात्मा से जरूर मिल लीजिए।”
वह महात्मा महल से दूर के स्थान पर एक कुटिया में रहता था। क्योंकि राजा अपना शरीर हिला भी हीं सकता था वह ज्यादा दूर तक चल भी नहीं सकता था, इसलिये उसने मंत्री को कहा कि वह उस बुद्धिमान महात्मा को महल में ही ले आए। परंतु महात्मा ने आने से मना कर दिया और कहा कि राजा अगर उपचार करवाना चाह्ते है तो उन्हें स्वयं कुटिया तक आना पड़ेगा ।
राजा ने सोचा अब जाना तो पडेगा। बहुत मुश्किल से राजा महल से निकलकर उसके निवास स्थान तक पहुच ही गया। महात्मा ने राजा का धन्यवाद व्यक्त किया और कहा कि आप बहुत अच्छे राजा हैं और आप जल्दी ठीक हो जाएंगे। उसने राजा को उपचार के लिए दूसरे दिन भी आने के लिए कहा। परंतु एक शर्त रखी, ” महाराज ,आपका उपचार तभी ठीक से हो सकता है जब आप स्वयम अपने पैरों पर चलकर मेरी कुटिया पर आयेंगे। ”
राजा का चलने में बहुत परेशानी होती थी फिर भी वह अपने कुछ मंत्रियों और सेवकों की मदद से दूसरे दिन भी कुटिया तक पहुंच गया। दुर्भाग्य से अगले दिन वह महात्मा कुटिया पर उपलब्ध ही नहीं था। उसके शिष्य ने बताया कि वह कहीं बाहर गए हैं और राजा से निवेदन किया कि अगले दिन भी वे चलकर उपचार के लिये आ जायें।
यह सिलसिला दो हफ्तों तक चलता रहा। राजा महात्मा से कभी मिल ही नही पाता था। वह कुटिया तक जाता और फिर महल तक चलकर वापिस आ जाता। धीरे-धीरे, राजा को एहसास हुआ कि वह बहुत हल्का महसूस कर रहा है, वजन भी कुछ कम हो गया हैै। और वह पहले से अधिक सक्रिय महसूस कर रहा था। अब उसे यह बात समझ में आ गयी कि क्यों महात्मा ने ने उसे रोज चलकर कुटिया तक पहुंचने के लिए कहा था। अब उसने आलस त्याग दिया। रोज कसरत करना शुरू कर दिया।
इस तरह बहुत जल्द, राजा ने अपना खोया हुआ स्वस्थ शरीर वापस कर लिया, और अब लोग भी अपने राजा से बहुत खुश थे।
स्वास्थ्य ही धन है!