सविय अवज्ञा आंनदोलन की किन्ही
तीन विशेषताओं की व्याख्या
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1929 ई. में लाहौर के काँग्रेस अधिवेशन में काँग्रेस कार्यकारणी ने गाँधीजी को यह अधिकार दिया कि वह सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करें। तद्नुसार 1930 में साबरमती आश्रम में कांग्रेस कार्यकारणी की बैठक हुई। इसमें एक बार पुन: यह सुनिश्चित किया गया कि गाँधीजी जब चाहें जैसे चाहें सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करें।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण
साइमन कमीशन के बहिष्कार आन्दोलन के दौरान जनता के उत्साह को देखकर यह लगने लगा अब एक आन्दोलन आवश्यक है।
सरकार ने मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट अस्वीकार कर दी थी इससे असंतोष व्याप्त था।
चौरी-चौरा कांड (1922) को एकाएक रोकने से निराशा फैली थी, उस निराशा को दूर करने भी यह आन्दोलन आवश्यक प्रतीत हो रहा था।
1929 की आर्थिक मंदी भी एक कारण थी।
क्रांतिकारी आन्दोलन को देखते हुए गांधीजी को डर था कि कहीं समस्त देश हिंसक आन्दोलन की ओर न बढ़ जाए, अत: उन्होंने नागरिक अवज्ञा आन्दोलन चलाना आवश्यक समझा।
देश में साम्प्रदायिकता की आग भी फैल रही थी इसे रोकने भी आन्दोलन आवश्यक था।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की पृष्ठभूमि
दिसम्बर, 1928 ई. में कलकत्ता में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ । उसमें नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया तथा सरकार को यह अल्टीमेटम दिया गया कि 31 दिसम्बर तक नेहरू रिपोर्ट की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया गया तो अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन चलाया जाएगा ।
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