Savitri Bain che vichar stri purusha samanta
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स्त्री और पुरुष दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, एक दूसरे के पूरक हैं, सहयोगी हैं, विरोधी नहीं । प्रकृति ने दोनों को एक खास मकसद से सृष्टि की निरंतरता हेतु बनाया है, दोनों एक दूसरे के लिए आवश्यक हैं, अनुपयोगी नहीं । दोनो एक दूसरे के मित्र हैं, शत्रु नहीं। हाल ही में दिल्ली में घटी गैंग रेप की वीभत्स और घिनौनी घटना ने न केवल पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि हमारे समाज में अब तक बने (पनपे) स्त्री- पुरुष के आपसी समीकरणों पर हम सबको पुनर्विचार करने के लिए मजबूर भी कर दिया है। अखबारों तथा न्यूज़ चैनलों पर दिन दिन भर चल रही बहसों, धरने और प्रदर्शनों को देखकर निम्न दो तरह के मत उभर कर सामने आ रहें हैं ।
एक मत तो अभी भी सामंत कालीन विचारधारा और ओछी मानसिकता से ग्रसित लग रहा है, जो पुरुष और महिलाओं के लिए अलग अलग माप दंड चाहता है । इस मत के लोग यह नहीं समझ पा रहें हैं, कि इस दोहरी मानसिकता की उपज उस समय की है जब हमारी आधी आबादी अधिकांशतः महिलाएँ अशिक्षित थी। आज ज़माना बदल चुका है, हम इक्कीसवीं सदी में हैं, शिक्षित हो रहे हैं, लोकतान्त्रिक समाज में जी रहे हैं और समानता की ओर अग्रसर हैं। इन दोहरे मापदण्डों के लिए इस आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है।
आज हमारी आधी आबादी सड़कों पर उतर आयी है। एक दूसरे के स्वर से स्वर मिलाकर पुरुषों को तहजीब सिखाने, अपनी हदों में रहने, व लिंग भेद भाव छोड़कर महिलाओं पर ढाए जा रहे अत्याचारों से बाज़ आने की बात कह रहीं हैं। समस्त पुरुष सदैव अपनी सीमा में रहें , बिना किसी
लिंग भेद भाव के समस्तमहिलाओं के साथ समानता व सज्जनता का व्योहर करें, इसके लिए सख्त से सख्त कानून बनाने की मांग कर रही हैं। समानता व सज्जनता का व्योहार न करने पर वे , नारी उत्पीड़न तथा बलात्कार जैसे अपराधों में लिप्त पुरुषों को नपुंशक बनाने अथवा दुराचरण करने वाले पुरुषों को स्वयं अपने हाथों से डंडा, पत्थर, मार मार कर अथवा उनकी आँख फोड़कर या उनके हाथों से नाखून निकालकर सजा देने तक की बात कर रही हैं।
दूसरा मत जो उक्त वर्णित बातों से सहमत है , महिलाओं का हमदर्द प्रतीत होता है, उसे सुनकर ऐसा लगता है , मानो स्त्री और पुरुष दोनों अपनी अपनी म्यान से तलवारें खींच कर एक दूसरे से दो दो हाथ करने को आमने सामने तन कर खड़े हो गए हैं। यह मत अत्यंत महत्वाकांछी लग रहा है, और यह भूल रहा है कि जिस समानता के उद्देश्य के लिए आज ये लोग सड़कों पर उतरे हैं, उससे परे ये पुनः एक नई तरह की असमानता का आह्वान कर रहे हैं। यह मत परिपक्व होकर एक ऐसी असमानता को जन्म दे सकता है , जिसमें आगे चलकर महिलाएं उन सभी अपराधों में लिप्त हो जाएंगी , जिनमें आज कुछ पुरुष लिप्त हैं। महिलाओं में समानता के बजाय अहम की भावना जाग्रत होगी और आज के चंद पुरुषों की भांति उनके भी उक्ष्रंखल अथवा निरंकुश होने के आसार बन जाएंगे, जो पुनः एक नई समस्या के जन्म का कारक बनेगा। हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारी लड़ाई स्त्री पुरुष में समानता लाने की है। परंतु इस दूसरे मत का अनुसरण करके जाने अनजाने में , हम एक समस्या का समाधान करने के बजाय उसे दूसरी तरह की समस्या में परिवर्तित कर देंगे। हमें इससे सावधान रहने की जरूरत है।
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