शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है -पर अनुछेद लिखिए हिंदी में
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सभी को शिक्षा देने की दिशा में आजादी के शुरूआती वर्षो से ही प्रयास किये जाने लगे. उसी का परिणाम था कि भारत सरकार ने वर्ष 1950 में शिक्षा के अधिकार को राज्य के निति निर्देशक तत्वों में शामिल किया गया. मगर इसके इतने प्रभावी न होने की स्थति में 12 दिसम्बर 2002 को सविधान के 86वें संशोधन के द्वारा भाग 21 के तीसरे उपभाग के रूप में 6 से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा का तत्वाधान किया गया.
इस मौलिक अधिकार को पारित करने से पूर्व इसका खाका तैयार कर अक्टूबर 2003 में इसे देश के लोगों के सामने सुझावों एवं अपनी राय देने बाबत प्रस्तुत किया. सभी सुझावों और विवादित विषयों पर सुधार करने के पश्तात इन्हे निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार विधेयक 2004 के लिए में तैयार किया गया.
राष्ट्रिय शिक्षा सलाहकार परिषद ने इस विधेयक को जून 2005 में पूर्ण रूप से तैयार कर केन्द्रीय मानव एवं संसाधन मंत्रालय (शिक्षा क्षेत्र इस विभाग अंतर्गत आता हैं.) सौपा गया, जिनको प्रधानमन्त्री के लिए भेज दिया गया. सभी तरह की कानूनी स्विक्रतिया मिलने के बावजूद योजना आयोग ने इसके वहन के लिए पर्याप्त धन राशि की अनुलब्धता की मज़बूरी बताते हुए लौटा दिया था.
importance of education for students
अपने पहले प्रयास में परवार न चढ़ पाने वाला शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में मन्त्रिमन्डल में प्रस्तुत किया गया. 2 जुलाई को राज्यसभा, 4 अगस्त को लोकसभा से पारित होने के बाद यह विधेयक 3 सितम्बर 2009 को राष्ट्रपति द्वारा पास किये जाने के साथ ही 1 अप्रैल 2010 को पुरे भारत में इसे लागू कर दिया गया.
सभी को निशुल्क और गुणवता पूर्ण शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से राज्य एक केन्द्रीय स्तर पर शिक्षक पात्रता परीक्षा का तत्वाधान किया गया. जो युवक आगे बढ़कर एक शिक्षक बनना चाहता हैं, उन्हें शिक्षक पात्रता परीक्षा अनिवार्य रूप से उतीर्ण करनी होती हैं.
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