शिक्षा संस्कार से सर्वागीण विकास पर अनुच्छेद
Answers
Answer:
answer is below hope it helps if it does please mark it as brainliest ❤️
.
Explanation:
बहुत जरूरी विषय है शिक्षा , बच्चा जन्म लेता है उसकी आंखे नजर बैठती नही और मा पिता की दिल्ही तमन्ना होने लगती की उनका बच्चा कुछ सीखे कमसे कम अपने मा बाप को पहचानना तो सीखे ,उसके लिये उसकी नजरो के सामने हात घुमाये जाते ताकि उसकी नजर बैठे तो उसवक़्त जो हात घुमाये जाता है वह हात साधन है , इसलिये शिक्षा मे साधन भी महत्वपूर्ण है ,फिर बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है उसे शिक्षा देने की कोशिश की जाती ,है और उसके लिये कई प्रकार के साधनो की अवश्यकता होती है ,आज हमारे शिक्षा की उपयोगिता रोजगार मे उपयुक्त साबित नही हो पा रही क्योंकि हमारी शिक्षा केवल किताब के चन्द शब्दो तक ही सीमित है , उसमे केवल कंठस्थ कर किसी प्रकार डिग्री प्राप्त करनेका उद्देश्य विद्यार्थी के सामने रखा जाता है, हमलोग हमारे पहले प्रयास को भी भुलजाते , हम जब बच्चा जन्म लेता है तो अनजाने मे ही क्यो ना हो मगर सार्थक प्रयास करते है उसे आत्मनिर्भर बनानेका ,हम उसे नजर बैठने के पहले चाहते की वह जल्द से जल्द दुनिया को पहचाने , मगर हम जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है मोहवश उसे साधनहीन बना देते है प्रयास होना चाहिये की उसे जितने जल्दी हो आत्मनिर्भर बनाये , उसे शिक्षा के साथ सामाजिक रिश्तो का महत्व समझे और व्यवहारिक ज्ञान मिले , सरकार को भी चाहिये की बच्चो के लिये ऐसी शिक्षा उपलब्ध करे जिससे की वह देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी बचपन से ही समझे ,बचपन से ही अगर बच्चो को ऐसे संस्कार मिले जिससे की उन्हे अपनी जिम्मेदारी का एहसास हो और उन्हे अच्छे बुरे की पहचान हो तो हमे स्वस्थ और सशक्त देश निर्माण करनेसे दुनिया की कोई ताकत नही रोक सकती , बच्चो को सिर्फ किताबी शब्दो की शिक्षा तक मर्यादित नही करना चाहिये ,उन्हे ऐसे साधन उपलब्द कराये जिस्ससे उन्हे आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा मिले और वह देश और अपने समाज के प्रति दायित्व को पूरा करने की प्रतिग्या करे ,बच्चो के मनमे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना हो ना की ईर्ष्या की उनमे आत्मज्ञान जाग्रत करो जिससे उनका आत्मविश्वास बढे उनके मनमे भेदभाव और अलगाव की भावना ना घर करे बल्कि बच्चो के दिलमे एकता और मिल बांटकर खाने की आदत हो ,आज हमे हमारे बचो को राष्ट्र हित हेतु ऐसी शिक्षा और संस्कार देने की अवश्यकता है जिससे वह राष्ट्र की तरक्की मे ही स्वयं का हित देखे
Answer:
Explanation:
संस्कारों से व्यक्ति महान बन जाता है
जिसने भी इनको अपनाया जीवन के हर मोड़ पर
वह सारे जहां का प्यारा सा इंसान बन जाता है
कहा जाता है शिक्षा जीवन का अनमोल उपहार है और संस्कार जीवन के सार हैं। इन दोनों के बिना धन-दौलत, जमीन-जायदाद, पद-प्रतिष्ठा और मान-मर्यादा सब बेकार हैं। शिक्षा व्यक्ति के जीवन को न केवल दिशा देती है वरना दशा भी बदल देती है। जब से शिक्षा का प्रचलन हुआ, अनादि काल से अर्थात् उस समय सीखे हुए ज्ञान को सहेज कर रखने के साधन भी नहीं थे तो भी ऋषि, मुनि, आचार्य, गुरु और संत-महात्माओं ने मानव जीवन के सार को पेड़ों की छालों पर लिखा, शिलाओं पर लिखा और पत्तों पर लिखा।
और वही ज्ञान समयान्तर विस्तृत होता गया, प्रसारित-प्रचारित होता गया और धीरे-धीरे आविष्कार होते गए और शिक्षा के स्वरूप में, शिक्षा के उद्देश्य में, तरीकों में और शिक्षा के मापदण्डों में निरन्तर परिवर्तन आता गया। और आज ऐसा समय आ गया है कि जब तक दुनिया का, देश का, समाज का और घर-परिवार का प्रत्येक बच्चा शिक्षित नहीं किया जाएगा तो फिर हम उन्नत दुनिया उन्नत देश की कल्पना तक भी नहीं कर पाएंगे। इसलिए आज समय बहुत तेजी से बदलता जा रहा है, नई-नई टेक्नोलॉजी विकसित हो रही है, शिक्षा के नए-नए साधन-आयाम विकसित और आविष्कृत हो रहे हैं, दुनिया सिकुड़ रही है, छोटी से छोटी घटना का पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ता है और इन प्रभावों को समझने के लिए, टेक्नोलॉजी को समझने के लिए, समय के साथ चलने के लिए अपनी संतान को अच्छी शिक्षा, सार्थक शिक्षा और व्यावहारिक शिक्षा से परिपूर्ण करना बहुत जरूरी है।
जिस प्रकार से बिना हथियारों के कोई युद्ध नहीं जीता जा सकता है उसी प्रकार बिना शिक्षा के जीवन को सार्थक और सच्चा नहीं बनाया जा सकता है। हमारी सबसे पहली जिम्मेदारी बनती है कि हर हाल में अपनी संतान को शिक्षित बनाएं ताकि वह परिवार-समाज और देश के विकास में अहम भागीदारी निभा सकें और राष्ट्र के अच्छे और जिम्मेदार नागरिक बन, अपना दायित्व बखूबी निभा सकें और जीवन को समझ और जी सकें गर्व से।
शिक्षा में ही संस्कार समाए हुए हैं क्योंकि भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्पराएं, भारतीय जीवन मूल्य शिक्षा के आधार है। सनातन धर्म यही सिखाता आया है कि मानव-मानव में प्रेम हो, भाईचारा हो, एकता हो, सहयोग हो और एक दूसरे के सुख-दु:ख में काम आएं। भारतीय संस्कृति की ही खास बात है कि उसमें सभी संस्कृतियां समा गई और उसने अपना वजूद बनाए रखा। संस्कार किसी पेड़ पर नहीं पनपते हैं, दीवारों से नहीं टपकते हैं, संस्कार तो घर-परिवार, समाज, शिक्षालयों और आसपास के परिवेश से सृजित होते हैं।
संस्कारों की सबसे अधिक जिम्मेदारी माता-पिता, परिजनों और शिक्षकों की होती है। यह भी सच है कि संस्कार मात्र कहने से, बोलने से नहीं आते हैं बल्कि ये तो व्यवहार से आते हैं, आचरण से आते हैं, सद्कर्म से आते हैं और चारित्रिक उज्ज्वलता से आते हैं। माता-पिता जैसा व्यवहार करेंगे, वैसा ही लगभग उनके बच्चे करते हैं। हमेशा याद रखें, आपकी हर हरकतों, कार्यो और व्यवहार का बारीक निरीक्षण आपके बच्चे कर रहे हैं, ध्यान रहे, वे कभी यह नहीं कह दे कि ये आपके क्या संस्कार हैं?