शिक्षा- संस्कार से विकास पर अनुच्छेद
Answers
Explanation:
कहा जाता है पुस्तके वो सधन है जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते है, और नैतिक शिक्षा और नैतिक मूल्यों और आदर्शो को भी स्थापित किया जा सकता है, परन्तु आज तो ऐसा कुछ भी नहीं है !
आज हम प्राय विद्यालयों में देखते है, की शिक्षा केवल नाम के लिए रह गयी है, शिक्षा के द्वारा प्राचीन समय में हमे ज्ञान तथा नैतिक मूल्यों को सिखाया जाता था !
परन्तु आज ये बहुत बड़ा प्रश्न हमारे सामने उठ खड़ा हुआ है, की आज की शिक्षा प्रणाली से हम वही ज्ञान और नैतिक मूल्यों को अर्जित कर रहे है, शिक्षार्थियों को केवल उत्तीर्ण करने के हेतु से उन्हें ज्ञान दिया जाता है, या फिर कह सकते है उन्हें तैयार किया जाता है !
और इसीसे रटंत विद्या जैसी परिकल्पना उठ खड़ी हुई है, और तोता रटंत विद्या यह साकार हो रही है, आज के युवा पीढ़ी के विद्यार्थी हर वो अनुचित कार्य कर रहे है जिसके करने के विचार से ही मन घबरा एवं सहम सा जाता है, क्या सही मायने में हम उन्हें सही ज्ञान और आदर्श सिखा रहे है ?
आख़िरकार ये जिम्मेदारी किसकी है ?
माता - पिता की , शिक्षक की , विद्यालय की , या पूरे समाज की, या सबसे अहम् भूमिका सरकार की !
सतर्कता के साथ सदैव कार्यशील एवं तत्पर रहना ही हमारे अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकती है , हमारे अर्थात सभी एक कामयाब शिक्षक या शिक्षिका और एक कामयाब शिक्षार्थी या शिक्षर्थिनी की भी !
अब बात कर ले नैतिक मूल्यों की, तो वो तो कहीं दूर दूर तक नजर ही नहीं आती !
एक शिक्षक जिसका नाम श्रवण करते ही हमारे समक्ष समाज का आदर्श, ज्ञान की मूर्ति, विवेक और सहनशीलता से परिपूर्ण न्यायप्रिय एवं अच्छी समझ रखनेवाला एक बेहतरीन इन्सान जैसी झलक हमारे आँखों के सामने आती है, परन्तु आज तो कहीं भी ऐसा दिखाई नहीं देता या मन में ऐसे विचार नहीं आते आज के इस कलयुग में शिक्षक की भी परिभाषा बदल गयी है, इतने सारे अनैतिक कार्य शिक्षको के द्वारा किये जाते है, जिनकी हम कभी परिकल्पना भी नहीं कर सकते है, और दोषारोपण केवल आज की शिक्षा प्रणाली एवं समाज और सरकार पर ही किया जाता है, ये कई हद तक सही भी है, परन्तु एक विद्यार्थी के साथ एक शिक्षक को भी अपने आदर्शो का मान रखना चाहिए ! शिक्षक नाम के गर्व को बनाये रखना चाहिए !
कहते है एक मछली पूरे तालाब को गन्दा करती है, उसी प्रकार किसी एक या दो शिक्षको के गलत कार्यो के द्वारा कहीं न कहें पूरे शिक्षक समाज पर उनकी छीटे उडी है, और इन छिटो को हम शिक्षक समाज को मिलकर ही दूर करना होगा, हमें अपने नाम के आगे गौरव की वो शिखा स्थापित करनी होगी, जिसे पार करना या वहा तक पहुचना किसी भी चरित्रहीन व्यक्ति के बस की बात न हो !
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Answer:
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Explanation:
कहा जाता है पुस्तके वो सधन है जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते है, और नैतिक शिक्षा और नैतिक मूल्यों और आदर्शो को भी स्थापित किया जा सकता है, परन्तु आज तो ऐसा कुछ भी नहीं है !
आज हम प्राय विद्यालयों में देखते है, की शिक्षा केवल नाम के लिए रह गयी है, शिक्षा के द्वारा प्राचीन समय में हमे ज्ञान तथा नैतिक मूल्यों को सिखाया जाता था !
परन्तु आज ये बहुत बड़ा प्रश्न हमारे सामने उठ खड़ा हुआ है, की आज की शिक्षा प्रणाली से हम वही ज्ञान और नैतिक मूल्यों को अर्जित कर रहे है, शिक्षार्थियों को केवल उत्तीर्ण करने के हेतु से उन्हें ज्ञान दिया जाता है, या फिर कह सकते है उन्हें तैयार किया जाता है !
और इसीसे रटंत विद्या जैसी परिकल्पना उठ खड़ी हुई है, और तोता रटंत विद्या यह साकार हो रही है, आज के युवा पीढ़ी के विद्यार्थी हर वो अनुचित कार्य कर रहे है जिसके करने के विचार से ही मन घबरा एवं सहम सा जाता है, क्या सही मायने में हम उन्हें सही ज्ञान और आदर्श सिखा रहे है ?
आख़िरकार ये जिम्मेदारी किसकी है ?
माता - पिता की , शिक्षक की , विद्यालय की , या पूरे समाज की, या सबसे अहम् भूमिका सरकार की !
सतर्कता के साथ सदैव कार्यशील एवं तत्पर रहना ही हमारे अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकती है , हमारे अर्थात सभी एक कामयाब शिक्षक या शिक्षिका और एक कामयाब शिक्षार्थी या शिक्षर्थिनी की भी !
अब बात कर ले नैतिक मूल्यों की, तो वो तो कहीं दूर दूर तक नजर ही नहीं आती !
एक शिक्षक जिसका नाम श्रवण करते ही हमारे समक्ष समाज का आदर्श, ज्ञान की मूर्ति, विवेक और सहनशीलता से परिपूर्ण न्यायप्रिय एवं अच्छी समझ रखनेवाला एक बेहतरीन इन्सान जैसी झलक हमारे आँखों के सामने आती है, परन्तु आज तो कहीं भी ऐसा दिखाई नहीं देता या मन में ऐसे विचार नहीं आते आज के इस कलयुग में शिक्षक की भी परिभाषा बदल गयी है, इतने सारे अनैतिक कार्य शिक्षको के द्वारा किये जाते है, जिनकी हम कभी परिकल्पना भी नहीं कर सकते है, और दोषारोपण केवल आज की शिक्षा प्रणाली एवं समाज और सरकार पर ही किया जाता है, ये कई हद तक सही भी है, परन्तु एक विद्यार्थी के साथ एक शिक्षक को भी अपने आदर्शो का मान रखना चाहिए ! शिक्षक नाम के गर्व को बनाये रखना चाहिए !
कहते है एक मछली पूरे तालाब को गन्दा करती है, उसी प्रकार किसी एक या दो शिक्षको के गलत कार्यो के द्वारा कहीं न कहें पूरे शिक्षक समाज पर उनकी छीटे उडी है, और इन छिटो को हम शिक्षक समाज को मिलकर ही दूर करना होगा, हमें अपने नाम के आगे गौरव की वो शिखा स्थापित करनी होगी, जिसे पार करना या वहा तक पहुचना किसी भी चरित्रहीन व्यक्ति के बस की बात न हो !