Hindi, asked by sayanti51, 7 months ago

शिक्षक दिवस पर 250 शब्दों का पैराग्राफ​

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Answered by palsudhir136
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Explanation:

प्रस्तावना - गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। कहा जाता है कि जीवन के सबसे पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है, लेकिन जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।  

कब-क्यों मनाया जाता - प्रतिवर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारतभर में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है। 'गुरु' का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व होता है। समाज में भी उनका अपना एक विशिष्ट स्थान होता है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा में बहुत विश्वास रखते थे। वे एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे। उन्हें अध्यापन से गहरा प्रेम था। एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे। इस दिन समस्त देश में भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है।

 

तैयारियां - इस दिन स्कूलों में पढ़ाई बंद रहती है। स्कूलों में उत्सव, धन्यवाद और स्मरण की गतिविधियां होती हैं। बच्चे व शिक्षक दोनों ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। स्कूल-कॉलेज सहित अलग-अलग संस्थाओं में शिक्षक दिवस पर विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। छात्र विभिन्न तरह से अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं, तो वहीं शिक्षक गुरु-शिष्य परंपरा को कायम रखने का संकल्प लेते हैं। 

Answered by guptaradhika2412
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Answer:

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Explanation:

शिक्षक वे हैं जो हमें गिरते हुए पकड़ते हैं और हमें जीवन का सबसे महत्वपूर्ण सबक देते हैं। शायद यह समाज के लिए उनके योगदान की एक छोटी मान्यता है कि प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को राष्ट्र शिक्षक दिवस मनाता है। शिक्षक दिवस पर स्कूलों में कई प्रोग्राम आयोजित किये जाते है, यह दिन स्कूलों में एक उत्सव का दिन है। शिक्षक दिवस पर पर स्कूल में वरिष्ठ छात्र शिक्षक के रूप में तैयार होते हैं और जूनियर कक्षाओं के छात्रों को पढ़ाते हैं। समारोह पूरे दिन आयोजित किए जाते हैं और आमतौर पर स्कूलों को कुछ विशेष गतिविधियों के साथ सजाया जाता है।

एक्चुएल हों या वर्चुएल, गुरुओं की भरमार है, शिक्षार्थी आज जितनी तरह के गुरुओं, ज्ञान स्रोतों से ज्ञानार्जन कर रहा है वैसा पहले कभी नहीं था, गुरुओं की भूमिका अचानक बदली है और वे नयी चुनौतियों से दरपेश हैं, गुरुओं के लिये यह गरिमा का समय है तो गाढ़ा वक्त भी है। समय की बलिहारी है, गुरु जो देव स्वरूप दुर्लभ थे आज गली-गली चहुंओर हैं। आज हर विद्यार्थी, शिक्षार्थी, ज्ञान साधक और जिज्ञासु शोधकर्ता दतात्रेय बना हुआ है। सबके हिस्से कई कई गुरु हैं। अंधेरे से निकलकर प्रकाश की ओर ले जाने वाला या कहें अपनी शिक्षा की रोशनी से जीवन-पथ आलोकित करने वाले गुरुओं की आज जितनी भरमार है कभी नहीं थी। कुछ एक्चुअल हंै तो कुछ वर्चुएल। कुछ मुख्य हैं तो कुछ सहायक तो कई अतिरिक्त। कभी जीवन-पथ प्रकाश से रोशन हेतु एक दो अथवा कुछ गुरु ही पर्याप्त थे या उन्हीं से काम चलाना पड़ता था। आज अनगिनत हैं तो जीवन-पथ जगमग ही नहीं चकाकौंध हो गया है। इस चुंधियाई अवस्था में यह समझना और फैसला करना मुश्किल है कि हम जो चाहते थे वह या नहीं चाहते थे वह बनाने में किस गुरु का योगदान कितना है?

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काको लागूं पांव, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय- वर्तमान संदर्भ में यदि इस दोहे को देखें तो निस्संदेह यहां गुरु ने बुद्धि चातुर्य का कार्य किया। यह गुरु की ही सम्यक बुद्धि का सुफल ही था कि उसने गोविंद की तरफ इशारा कर दिया वरना गुरुओं की संख्या और भिन्नता इतनी ज्यादा है कि काको लागूं पांव जैसे सवाल के किसी एक जवाब पर बवाल हो सकता था, सबके पांव गहे नहीं जा सकते थे, एक के पांव पड़ने से काम न चलता विवाद बढ़ता और उचित प्रतिसाद न दे पाने से पश्चाताप होता अलग से, सो इस पचडे से गुरु ने बचा दिया। अब गुरु ही इतने हैं कि श्रद्धा का न्यायपूर्ण कोटा कम पड़ जाता है।

आज 2020 के पूर्वार्ध में शिक्षक की प्रकृति में और शिक्षा प्रणाली और व्यवस्था के क्षेत्र में जो सहभागिता अब तक रही है उसमें भारी बदलाव दिखता है। इस सूचना प्रस्फोट के बाद वाले अत्याधुनिक युग में आधुनिक समाज जो इंटरनेट और या दूसरे संसाधनों से बुरी तरह इंटरकनेक्टेड या अंतरसंबंधित है उसमें आचानक ही गुरुओं की भरमार हो गई है। सीखने वाले, विद्याभ्यासियों, विद्यार्थियों और कौशल तथा ज्ञान विकसित करने की इच्छा रखने वाले जिज्ञासुओं, शोधार्थियों के लिये जहां नये क्षेत्र खुले हैं वहीं उनके लिये शिक्षकों की आपूर्ति भी हुई है, इसलिये इस दर्द के बावजूद कि देश की प्राथमिक शालाओं से लेकर आईआईटीज तक में शिक्षकों की भारी कमी है, कहना पड़ता है कि आबादी के अनुपात में शरीरी और अशरीरी हर तरह के गुरु तेजी से बढे़ हैं। विभिन्न तरह की योग्यता विशेषज्ञता, दावों के साथ भांति भांति के गुरुओं के बीच जो होड़ आज है वह हो सकता है कभी ऋषियों, मुनियों के बीच रही होगी पर इतनी तीखी और इतनी उजागर नहीं।

अब शिक्षक के बदले बने साफ्टॅवेयर हैं, प्रोग्राम, चैनल, वेब साइट्स, एप यहां तक कि बुक फाइंडर, खास सर्च इंजिन, वर्चुअल क्लासरूम और टीचर है, कहने का मतलब यह कि सीखने वालों के पास अपार अवसर हैं। शिक्षकों के आसान विकल्प हैं। आवश्यक नहीं कि वह जीते जागते शिक्षक से ही सीखंे। वैसे भी आज कक्षा में खड़ा शिक्षक उस कक्ष में उपस्थित सबसे स्मार्ट या विषय का सर्वज्ञ जैसा जानकार हो इसका दावा नहीं किया जा सकता। कुछ विद्यार्थी भी इतने स्रोतों से ज्ञानार्जन के बाद कक्षा में बैठे हो सकते हैं कि वे उस विषय विशेष की अद्यतन जानकारी शिक्षक से बेहतर रख सकते हैं। हालत यह है कि शिक्षक भी आज विद्यार्थी है, बहुधा तो वह वहीं से सीख रहा होता है जहां से उसका विद्यार्थी यानी इंटरनेट से, मानो गुरु और उसका शिष्य किसी महागुरू के गुरु भाई हुए। जहां देखो वहां ज्ञान बंट रहा बह रहा है। कक्षाओं में शायद यह न भी मिले पर कक्षाओं के बाहर यह अगाध है, अबाध है। बहुत नजदीक तो शिक्षक लैपटॉप के जरिये आपकी गोद में है तो टैब और इंटरनेट के जरिये सात समंदर पार पढ़ा रहे शिक्षक की भी सेवा आप ग्रहण कर रहे हैं।

शिक्षक दिवस आता है, स्कूलों में शिक्षक आपस में मिलकर इसे मनाते हैं, विद्यार्थियों का चंदा इसमें शामिल होता है, उनको भी इसमें शामिल होने को कहा जाता है, कुछेक श्रद्धा और सम्मानवश तो कुछ परंपरा के अनुसार तो कई गुरूजी से बेहतर संबंध के लाभ की सोच गिफ्ट भी दे आते हैं। प्रधानमंत्री बच्चों से मन की बातें करते हैं, कुछ बयान, घोषणाएं और समारोह तथा समाचार, बस इतनी सी खानापूर्ति। शिक्षक दिवस बीत जाने पर एकाध स्वर यों भी उठते हैं। अब वह वह न तो पहले जमाने वाले गुरु जी रहे और न ही विद्यार्थी। कोई उन्हें समझाये कि विद्यार्थी तो बरस दर बरस बदलाव से गुजरता है वह पहले जमाने वाला कैसे रह सकता है और जब पहले जमाने वाला कुछ न रहा, न किताब,न कक्षा, न स्कूल तो ये शिक्षक भी पहले जैसा क्यों रहें। फिर यह भी जुमला उभरता है कि अब शिक्षकों के प्रति विद्यार्थियों में वह सम्मान, वह श्रद्धा न रही। शिक्षकों का अनुशासन तो गायब हो चला है, बहुत फ्रेंडली हो गये हैं। गुरु जी के गुरुतर साख में वाकई बड़ी गिरावट आयी है। इन जुमले बाजों पर न जायें वे यही बात राजनेता, पत्रकार, चिकित्सक, और यहां तक कि वकीलों और इंजीनियरों वगैरह के बारे में भी कहते है।

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