श्लोकं पूर्ण शुद्धं च लिखत।
गुणा: कुर्वन्ति . षट्पदाः
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गुणाः कुर्वन्ति दूतत्वं दूरेऽपि वसतां सताम्।
केतकीगन्धमाघ्राय स्वयमायान्ति षट्पदाः॥
सुभाषितरत्नभाण्डागारम्
गुण talent, virtue, merit प्रथमाबहुवचनान्त:(पु)
→ गुणा:
कृ to do प्रथम पुरुष वर्तमानकालवाचक बहुवचनम्
→ कुर्वन्ति
दूतत्व state of a messenger द्वितीयैकवचनान्त:(न)
→ दूतत्वम्
दूर far away, distant सप्तम्येकवचनान्तः(न)
→ दूरे
अपि even if अव्ययम्
वस् to reside कर्तरि वर्तमानकालवाचक धातुसाधित विशेषणम्
→ वसत्
षष्ठीबहुवचनान्त:(पु)
→ वसताम्
सत् virtuous and righteous person षष्ठीबहुवचनान्त:(पु)
→ सताम्
केतकीगन्ध smell of Ketaki flower द्वितीयैकवचनान्त:(पु)
→ केतकीगन्धम्
आघ्रा to smell पूर्वकालवाचक धातुसाधित अव्ययम्
→ आघ्राय
स्वयम् voluntarily अव्ययम्
आ-या to approach प्रथम पुरुष वर्तमानकालवाचक बहुवचनम्
→ आयान्ति
षट्पद bee प्रथमाबहुवचनान्त:(पु)
→ षट्पदाः
सज्जन व गुणवान लोक लांबवर रहात असले तरी त्यांचे गुणच त्यांच्या दूताचे काम करून त्यांचे अस्तित्व जाहीर करतात व लोक त्यांच्याकडेे आकृष्ट होतात, जसे दूरवरच्या केवड्याचा सुगंध दरवळताच भ्रमर स्वतःहून त्याच्याकडे येतात.
Even if virtuous and talented persons are residing far away, their talents act as a messenger and pronounce their existence and people throng to them just like the insects which approach Ketaki flower on being attracted by its sweet smell.
भले ही अच्छे और गुणवान लोग दूर रहते हों, उनके गुण ही उनका दूत बनकर उनकी मौजूदगी का उच्चारण करते हैं और लोग उनकी तरफ उसी तरह आकर्षित होते हैं जिस तरह भ्रमर केतकी की मीठी गंध से आकर्षित होते हैं।