श्न 22 महाशक्तियों छोटे देशों को अपने साथ क्यों रखती थी? समझाइए।
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शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद क्या गुटनिरपेक्षता की नीति प्रासंगिक अथवा उपयोगी है ? समझाइए
Answers
महाशक्तियों छोटे देशों को अपने साथ क्यों रखती थी? समझाइए।
➲ महाशक्तियां निम्न कारणों से छोटे देशों के साथ अपने साथ रखती थीं...
- छोटे देशों में अनेक महत्वपूर्ण संसाधन जैसे तेल और खनिज आदि उनके काम आते थे।
- छोटे देशों का भी भू-क्षेत्र महाशक्तियों के लिए अपने हथियार और सेना का संचालन करने के काम आता था।
- जरूरत पड़ने पर महाशक्तियां छोटे देशों में अपने अप सैनिक ठिकाने बना सकती थीं, जहां से वह अपने विरोधी पक्ष की जासूसी कर सकें।
- महा शक्तियां को यदि कोई आर्थिक आवश्यकता पड़े तो छोटे देश उनके लिए मददगार हो सकते थे।
यही कारण था महा शक्तियां छोटे देशों को अपने साथ रखती थी ताकि वह एक गुट बना सकें और किसी आवश्यकता की स्थिति में छोटे देश उनके काम आ सकें।
शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद क्या गुटनिरपेक्षता की नीति प्रासंगिक अथवा उपयोगी है ? समझाइए।
➲ जब शीत युद्ध अपने चरम पर था तो दोनों दोनों महाशक्तियां दुनिया के देशों को अपने-अपने गुट में शामिल करने में लगी हुई थीं । तब ऐसे में इन दोनों महा शक्तियों के प्रभाव से अलग एक नये गुट का जन्म हुआ जो गुट-निरपेक्ष आंदोलन बना ।
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद शीतयुद्ध लगभग समाप्त हो गया है और अमेरिका ही इकलौती महाशक्ति बचा है । ऐसे में सवाल उठता है कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन जोकि शीतयुद्ध के परिणामस्वरूप बना था, उसकी अब क्या प्रासंगिकता है ? तो यहां यह कहा जा सकता है कि गुट-निरपेक्ष आंदोलन आज के समय में भी पूरी तरह अप्रासंगिक नहीं हुआ है।
- गुट-निरपेक्ष आंदोलन के ज्यादातर देश आज भी विकासशील व पिछड़े हुए हैं । इस कारण विकसित देशों द्वारा उनका शोषण संभव है । ऐसे में जरूरी है कि वह गुट-निरपेक्ष आंदोलन के अन्य देशों से जुड़े रहे और विकसित देशों पर दबाव बनाए।
- विकासशील देशों के सामने अभी भी बहुत सारी समस्याएं हैं, गुट-निरपेक्ष आंदोलन में एक-दूसरे के साथ आकर अपनी-अपनी समस्याओं से निबट सकते हैं ।
- भारत जैसे कई विकासशील देश आज भी अपनी विदेश नीति के रूप में गुट-निरपेक्ष आंदोलन की नीति का अनुसरण करते हैं।
- विकासशील देशों को अपने हितों की रक्षा के लिए एक मंच पर बने रहना बहुत जरूरी है ।
- गुट-निरपेक्ष आंदोलन अगर अप्रासंगिक हो गया होता तो उसके आज 120 सदस्य देश नही होते।
इस प्रकार हम यह मान सकते हैं कि गुट-निरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता आज भी कम नहीं हुई है।
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